चाणक्य नीति सूत्र: कार्य के अनुरूप ही करना चाहिए प्रयत्न, वरना...

Tuesday, Apr 06, 2021 - 01:45 PM (IST)

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कार्य कोई भी कैसा भी हो, उसे पाने के लिए व्यक्ति को मेहनत करनी ही पड़ती है। मगर ये बहुत कम लोग जानते हैं कि मेहनत भी हमेशा कार्य के अनरूप होनी चाहिए। जी हां, कुछ लोग या तो बहुत ज्यादा मेहनत करते हैं, या बहुत कम। जिस कारण उन्हें सफलता नहीं मिल पाती। इस संदर्भ में आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में बताया है कि हर व्यक्ति को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि, जिस कार्य को वो संपन्न करना चाहता है उस बार में सबसे पहले ये जानें कि उस कार्य को करने में कितने परिश्रम व प्रयत्न की आवश्यकता है। क्योंकि जिस तरह किसी चीज़ को हासिल करने के लिए जैसे कम परश्रिम या मेहनत व्यक्ति को असफल करती है, ठीक उसी तरह अधिक मेहनत भी व्यक्ति को उसकी मंजिल तक पहुंचने नहीं देती। आइए जानते हैं इससे संबंधित चाणक्य नीति श्लोक में वर्णित श्लोक

चाणक्य नीति श्लोक- 
कार्यानुरूपम: प्रयत्न:।
भावार्थ-
कार्य के अनुरूप प्रयत्न करें
अर्थात- जैसा कार्य हो, जिस मन:स्थिति का हो जिस स्थान विशेष से संबंधित हो, जैसे साधन हों, उन्हीं के अनुसार अच्छी प्रकार से सोच-समझ कर कार्य करने चाहिएं।

इसके अलावा चाणक्य एक श्लोक में यह भी बताना व समझाना चाहा है कि किसी को दान देते वक्त हमेशा उसके पात्र का ध्यान। कभी कभी दान पात्र से ज्यादा या कम दान देना चाहिए। बल्कि हमेशा उसक अनुरूप ही दान दें। आइए जानते हैं इससे संबंधित चाणक्य श्लोक- 

चाणक्य नीति श्लोक- 
पात्रानुरूपं दानम्।

भावार्थ- पात्र के अनुरूप दान दें
अर्थात- दान देते समय राजा को यह देख लेना चाहिए कि पात्र कैसा है। उसकी योग्यता एवं वर्चस्व कैसा है। उसी के अनुरूप उसे दान दें, अन्यथा दान का महत्व नहीं रहता।

Jyoti

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