चाणक्य नीति: अन्न से बढ़ा धन नहीं

Sunday, Oct 18, 2020 - 04:24 PM (IST)

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आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में बहुत सी नीतियों के बारे में बताया है। कहा जाता है कि इन नीतियों को अपनाने वाले व्यक्ति कभी अपने जीवन में किसी तरह की असफसलता का मुख नहीं देखता है परंतु इसके अलावा इन्होंने अपने नीति शास्त्र में ऐसी भी कई बातों का वर्णन किया है, जिसे जानने के बाद व्यक्ति को जीवन जीने का सलीका तो आता ही है, साथ ही साथ ऐसी कई बातों का पता चलता है कि जिससे समाज में मान-सम्मान प्राप्त भी होता है। चलिए आपको बताते हैं इन नीति श्लोकों के बारे में, जिसमें चाणक्य ने कुछ ऐसी ही बताया है। 

श्लोक-
पय: पानपि विषवर्धनं भुजंगस्य नामृतं स्यात्।
भावार्थ- 
सांप को दूध पिलाने से विष ही बढ़ता है, न कि अमृत।

नीच व्यक्ति को कितना ही पढ़ाओ-लिखाओ, उसकी बुद्धि सदैव दुष्कर्मों की ओर ही प्रवृत्त होती है। वह कोई श्रेष्ठ या उत्तम कर्म करने की कोशिश कभी नहीं करता।

श्लोक-
नहि धान्यसमो ह्यर्थ : ।
भावार्थ- 
अन्न से बढ़ा धन नहीं

इस संसार में अन्न के सम्मुख सभी तरह के धन व्यर्थ हैं। अन्न जीवनोपयोगी होता है। अन्न से ही आदमी की प्रथम और अत्यंत आवश्यक जरूरत पूरी होती है। अन्न से वह अपनी भूख मिटाता है और भूख शाश्वत सत्य है।

श्लोक-
न चौर्यात्परं मृत्युपाश:।
भावार्थ-
चोर कर्म से बढ़कर कष्टदायक मृत्यु पाश भी नहीं है।


मृत्यु का दुख भी इतना बड़ा नहीं होता जितना कि किसी दूसरे का माल चुराने से होता है। चोर कर्म व्यक्ति को जीवन भर सालता रहता है। वह किसी को अपना मुख दिखाने के लायक नहीं रहता।

Jyoti

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