सांप से भी ज्यादा विषैले होते हैं ऐेसे लोग, रखें इनसे दूरी

Monday, Sep 14, 2020 - 03:08 PM (IST)

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आचार्य चाणक्य के ज्ञान की कोई सीमा नहीं थी, उनमें इस हद तक ज्ञान का भंडार था कि वो कठिन से कठिन परीस्थिति में से आसानी से निकल पाने की क्षमता रखते थे। यही कारण था कि मौर्य वंश के साम्रात ने अपनी जीवन काल में प्रत्येक जरूरी फैसला इनकी राय बिना नही लिया था। आपको बता दें न केवल उस समय में बल्कि आज के समय में भी इनकी नीतियां बहुत ही उपयोगी मानी जाती है। यही कारण है कि हम समय-समय पर अपनी वेबसाइट के माध्यम से आप तक इनके नीति सूत्र में वर्णित श्लोक आदि बताते रहते हैं ताकि आप इनकी मदद से अपने उन ज़रूरी पहलू के बारे में बताया गया है जिन्हें जानने के बाद किसी भी व्यक्ति के जीवन में सफलता पाना मुश्किल नहीं होता। तो चलिए एक बार फिर आज जानते हैं आचार्य चाणक्य द्वारा बताए गए ऐसे सूत्र जिसमें उन्होंने 3 श्लोकों में तीन अलग-अलग बातों का जिक्र किया है। 


श्लोक:-
तक्षकस्य विषं दन्ते मक्षिकायास्तु मस्तके । 
वृश्चिकस्य विषं पुच्छे सर्वाङ्गे दुर्जने विषम् ।।

इस श्लोक में चाणक्य न धूर्त व्यक्ति की तुलना विषैले सांपों से की है। जी हां, चाणक्य के अनुसार जो व्यक्ति स्वभाव से दुर्जन व्यक्ति की तुलना जहरीले सांपों से की है। वे कहते हैं कि दुर्जन व्यक्ति और जहरीले जीवों में फर्क इतना होता है कि सर्प जीव अपने दांत से जहर छोड़ता है, मधुमक्खी अपने मस्तक से, बिच्छू अपने पूंछ से, जबकि दुर्जन व्यक्ति की पूरी देह ही विष से भरी होती है। ऐसे लोगों के संपर्क में आने वाले लोग भी उनके जैसे ही दुष्प्रभाव वाले हो जाते हैं जो न तो किसी का भला करते हैं, न ही किसी और को कुछ अच्छा करने देते हैं। इसलिए आचार्य चाणक्य कहते हैं ऐसेे लोगों के संपर्क में आने से बचना चाहिए। 

श्लोक:-
पत्युराज्ञां विना नारी उपोष्य व्रतचारिणी ।
आयुष्यं हरते भर्तुः सा नारी नरकं व्रजेत् ।।

अपने नीति सूत्र के इस श्लोक में चाणक्य किसी की स्त्री का सबसे बड़ा धर्म उसके पतिव्रता स्वभाव तथा पति की आज्ञा मानना होता है। चाणक्य कहते हैं जो स्त्री अपने पति की छोटी से छोटी बात मानती हैं, और कभी उसकी आज्ञा के विपरीत कोई काम नहीं करती, उसका जीवन बहुत अच्छा गुज़रता है। इसके विपरीत कार्य करने वाले महिला अपने पति की अकाल मृत्यु का कारण बनती है। इस संदर्भ से संबंधित 1 अन्य श्लोक में आचार्य कहते हैं-

श्लोक:-
न दानैः शुद्ध्यते नारी नोपवासशतैरपि । 
न तीर्थसेवया तद्वद् भर्तु: पादोदकैर्यथा ।। 

चाणक्य बताते हैं कि पत्नी के लिए अपने पति की सेवा करना अन्य समस्त शुभ कर्मों से बढ़कर होता है। यहां तक कि चाणक्य ने अपने नीति श्लोक में कहा है कि हमेशा पति के कहने अनुसार चलने वाली स्त्री को अपने जीवन में किसी भी तरह दान व्रत तथा पावन नदियों में स्नान तक करने की आवश्यकता नहीं होती। बल्कि पति के सेवा के रूप में वे स्वयं की समर्पित कर परम पवित्र हो जाती है। 
 

Jyoti

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