चाणक्य नीति: मन में न आने दें ऐसी भावना, धन व वैभव छोड़ देगा साथ

Sunday, Dec 25, 2016 - 04:21 PM (IST)

आचार्य चाणक्य का जन्म करीब 300 ईसा पूर्व में हुआ माना जाता है। महान राजनीतिज्ञ अौर कुटनीतिज्ञ होने के साथ-साथ इन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना व चन्द्रगुप्त मौर्य को सम्राट बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। पाटलिपुत्र से संबंध होने के कारण उसे इन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाया। आचार्य चाणक्य एक बड़े दूरदर्शी विद्वान थे। चाणक्य जैसे बुद्धिमान, रणनीतिज्ञ, चरित्रवान व राष्ट्रहित के प्रति समर्पित भाव वाले व्यक्ति भारत के इतिहास में ढूंढने से भी बहुत कम मिलते हैं। इनकी नीतियों में उत्तम जीवन का निर्वाह करने के बहुत से रहस्य समाहित हैं, जो आज भी उतने ही कारगर सिद्ध होते हैं। जितने कल थे। इन नीतियों को अपने जीवन में अपनाने से बहुत सी समस्याओं से बचा जा सकता है। चाणक्य ने बताया है कि व्यक्ति को लालच नहीं करना चाहिए।

 

अर्थतोषिणं श्री: परित्यजति। 

 

भावार्थ: राजा को कभी धन-वैभव का लालची नहीं होना चाहिए। धन का संग्रह उसे देश अथवा अपने राज्य के विकास के लिए करना चाहिए। राजा यदि स्वयं धन को अपना मानकर चलने लगता है तो धन वैभव, सम्मान उसे स्वयं ही छोड़ देता है।
 

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