चाणक्य नीति: ऐसा कार्य करने से होता है धर्म का नाश

Sunday, Nov 20, 2016 - 04:31 PM (IST)

आचार्य चाणक्य का जन्म करीब 300 ईसा पूर्व में हुआ माना जाता है। महान राजनीतिज्ञ अौर कुटनीतिज्ञ होने के साथ-साथ इन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना व चन्द्रगुप्त मौर्य को सम्राट बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। पाटलिपुत्र से संबंध होने के कारण उसे इन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाया। आचार्य चाणक्य एक बड़े दूरदर्शी विद्वान थे। चाणक्य जैसे बुद्धिमान, रणनीतिज्ञ, चरित्रवान व राष्ट्रहित के प्रति समर्पित भाव वाले व्यक्ति भारत के इतिहास में ढूंढने से भी बहुत कम मिलते हैं। इनकी नीतियों में उत्तम जीवन का निर्वाह करने के बहुत से रहस्य समाहित हैं, जो आज भी उतने ही कारगर सिद्ध होते हैं। जितने कल थे। इन नीतियों को अपने जीवन में अपनाने से बहुत सी समस्याओं से बचा जा सकता है। चाणक्य ने ऐसे कार्य के बारे में बताया है जिसको करने से व्यक्ति के धर्म अौर अर्थ दोनों का नाश होता है। 

 

मृगयापरस्य धर्मार्थो विनश्यत:।

 

भावार्थ: जो राजा सदैव आखेट में ही डूबा रहता है और उसे अपना मनोरंजन मानकर चलने लगता है, वह अपना धर्म और अर्थ दोनों नष्ट कर डालता है।
 

Advertising