प्रवास काल में गुप्त धन के समान होती है ये चीज़, चाणक्य से जानें क्या है वो वस्तु

Wednesday, Jul 29, 2020 - 12:49 PM (IST)

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आचार्य चाणक्य की नीतियों को अगर आज के समय में भी कोई अपनाता है तो कहा जाता है कि उसे जीवन में कभी असफलता का सामना नहीं करना पड़ता। तो वहीं इन्होंने अपने नीति सूत्र में इन्होंने युवास्था से लेकर गृहस्थ जीवन तक के बारे में बातें वर्णित है। हमेशा की तरह आज भी हम आपके लिए लाएं आचार्य चाणक्य के नीति सूत्र में से कुछ खास श्लोक जिसमें इन्होंने बताया है कि कैसे करियर और आर्थिक जीवन में सफलती पाई जा सकती है। 

यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवाः। न च विद्यागमोऽप्यस्ति वासस्तत्र न कारयेत् ॥ 
भावार्थ: इस श्लोक में चाणक्य कहते हैं सफलता पाने के लिए इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए कि कभी आगे बताए गए स्थानों पर न रहें। जिस देश में सम्मान न हो, आजीविका न मिले, कोई भाई-बन्धु न रहता हो तथा जहां विद्या-अध्ययन सम्भव न हो। इन स्थानों पर रहने वाला इंसान कभी खुश नहीं रह पाता। 

यो ध्रुवाणि परित्यज्य ह्यध्रुवं परिसेवते। ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति चाध्रुवं नष्टमेव तत् ॥ 
भावार्थ: उपरोक्त श्लोक में चाणक्य बताते हैं कि जो व्यक्ति निश्चित को छोड़कर अनिश्चित का सहारा लेता है या उसका साथ देता है, उसका निश्चित भी नष्ट हो जाता है और अनिश्चित भी। कभी जीवन में वो हासिल नहीं होता जो हासिल होना चाहिए।  


कामधेनुगुणा विद्या ह्ययकाले फलदायिनी। प्रवासे मातृसदृशा विद्या गुप्तं धनं स्मृतम्॥ 
भावार्थ: चाणक्य कहते हैं कि विद्या कामधेनु के समान गुणों देने वाली मानी जाती है। जो हमेशा बुरे समय में भी साथ देती है और अच्छे फल प्रदान करती है। चाणक्य कहते हैं प्रवास काल में विद्या मां के समान एवं गुप्त धन के समान होती है।  

Jyoti

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