कीचड़ में पांव रखने वालों को दलदल में धंसने से कोई नहीं बचा सकता

Sunday, Dec 29, 2019 - 02:15 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
कहा जाता है हमारे देश में ऐसे कई महापुरुष रहे हैं, जिन्हें अपने ज्ञान से न केवल समाज में अपनी पहचान बनाई बल्कि अपने ज्ञान को दुनिया के लोगो से बांटा ताकि उनके साथ-साथ वो भी प्रगति की ओर बढ़े। आज हम आप से इन्हीं महापुरुषों के कुछ अनमोल विचारों को आप से सांझा करने जा रहे हैं।

मनुष्य को अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही दान करना चाहिए। जो सामर्थ्य से अधिक दान कर देता है उसे बाद में निर्धनों जैसा ही जीवन जीना पड़ता है। अपनी आय के अनुसार ही दान देना चाहिए।

क्रोध हमारा बोध खो देता है। मनुष्य के स्वर्ग जैसे जीवन को नर्क बना देता है। अहंकार क्रोध का बड़ा भाई है। हिंसा क्रोध की पत्नी है। क्रोध के पिता का नाम है डर। ङ्क्षनदा-चुगली क्रोध की बेटियां हैं। ईष्र्या इस खानदान की बहू है। घृणा इस खानदान की पोती है।  उपेक्षा क्रोध की माता है।  

बुरे कर्म करने से बचो। बुरे कर्म मनुष्य का जीवन बर्बाद कर देते हैं। ऐसे आदमी की कोई इज्जत नहीं करता। श्रीमद् भागवत गीता में भी लिखा है  कर्मों का फल तो तुम्हें भोगना ही पड़ेगा। कीचड़ में पांव रखोगे तो उसमें धंसते ही जाओगे। अनमोल जीवन मिला है। सद्कर्म कर आनंद लूटें।

माता-पिता को माथा टेकने वाले को किसी दूसरे के आगे घुटने नहीं टेकने पड़ेंगे जिसके पास दुआओं की दौलत है। वही सबसे बड़ा अमीर है।  

सात दिन मूसलाधार वर्षा होती रही। सात दिन-रात भगवान श्री कृष्ण जी ने अपने बाएं हाथ की कनिष्ठा उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाए रखा। सात दिन कुछ खाया-पीया नहीं। माता यशोधा कन्हैया को दिन में आठ बार खिलाती थीं। इसीलिए भगवान को छप्पन भोग लगाते हैं।

Jyoti

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