कैसे पड़ा शक्ति के पांचवे रूप का नाम स्कंदमाता ?

Wednesday, Apr 10, 2019 - 10:43 AM (IST)

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आज चैत्र नवरात्रि का पांचवा दिन है। ज्योतिष के अनुसार इस दिन देवी दुर्गा के पांचवें स्वरूप स्कंदमाता की पूजा का विधान है। बता दें कि स्कंद की माता होने के कारण शास्त्रों में इन्हें स्कंदमाता कहा गया है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक स्कंद देवता कोई और नहीं बल्कि भगवान शंकर के पुत्र कार्तिकेय को ही कहा जाता है। यह प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति थे। इसके अलावा इन्होंने देवताओं की रक्षा हेतु असुर ताड़कासुर का वध किया था। यही कारण है कि देवी स्कंदमाता की गोद में स्कंद देवता हमेशा विराजमान रहते हैं। तो आइए पांचवे नवरात्रि के इस खास मौके पर जानते हैं स्कंदमाता से जुड़ी पौराणिक कथा और साथ ही जानेंगे इनके उपासना मंत्र और पूजन विधि के बारे में-

सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया |
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ||

स्कन्दमाता स्वरुपिणी देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा से भगवान स्कन्द को गोद में पकड़े हुए हैं। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है, उसमें कमल-पुष्प लिए हुए हैं। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। मां का वर्ण पूर्णतः शुभ्र है। सिंह इनका वाहन है।

शेर पर सवार होकर माता दुर्गा अपने पांचवें स्वरुप स्कन्दमाता के रुप में भक्तजनों के कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहती हैं। इन्हें कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री कहा जाता है। कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री देवी स्कन्दमाता की नवरात्रि में पूजा अर्चना करने का विशेष विधान है। नवरात्रि पूजन के पांचवे दिन इन्हीं माता की उपासना की जाती है।शास्त्रों के अनुसार स्कन्दमाता की पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है और उसे इस मृत्युलोक में परम शांति का अनुभव होने लगता है। माता की कृपा से उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वमेव सुलभ हो जाता है। इस दिन साधक का मन विशुध्द चक्र में होता है।

पौराणिक कथानुसार भगवती स्कन्दमाता ही पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती हैं। महादेव की पत्नी होने के कारण माहेश्वरी और अपने गौर वर्ण के कारण गौरी के नाम से भी माता का पूजन किया जाता है। माता को अपने पुत्र से अधिक स्नेह है और इसी कारण इन्हें इनके पुत्र स्कन्द के नाम से जोड़कर पुकारा जाता है। स्कन्द माता की उपासना से बालरूप स्कन्द भगवान की उपासना स्वयं हो जाती है। मां स्कन्द माता की उपासना से उपासक की समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं।

उपासना मंत्र-
ॐ स्कंदमातायै नमः
ध्यान
वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम्।।

धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।

अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्।

मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्॥

प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम्।

कमनीया लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥

स्तोत्र पाठ
नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्।

समग्रतत्वसागररमपारपार गहराम्॥

शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।

ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रीन्तिभास्कराम्॥

महेन्द्रकश्यपार्चिता सनंतकुमाररसस्तुताम्।

सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलादभुताम्॥

अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्।

मुमुक्षुभिर्विचिन्तता विशेषतत्वमुचिताम्॥

नानालंकार भूषितां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।

सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेन्दमारभुषताम्॥

सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्रकौरिघातिनीम्।

शुभां पुष्पमालिनी सुकर्णकल्पशाखिनीम्॥

तमोन्धकारयामिनी शिवस्वभाव कामिनीम्।

सहस्त्र्सूर्यराजिका धनज्ज्योगकारिकाम्॥

सुशुध्द काल कन्दला सुभडवृन्दमजुल्लाम्।

प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरं सतीम्॥

स्वकर्मकारिणी गति हरिप्रयाच पार्वतीम्।

अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥

पुनःपुनर्जगद्वितां नमाम्यहं सुरार्चिताम्।

जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवीपाहिमाम्॥

कवच
ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मघरापरा।

हृदयं पातु सा देवी कार्तिकेययुता॥

श्री हीं हुं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा।

सर्वांग में सदा पातु स्कन्धमाता पुत्रप्रदा॥

वाणंवपणमृते हुं फ्ट बीज समन्विता।

उत्तरस्या तथाग्नेव वारुणे नैॠतेअवतु॥

इन्द्राणां भैरवी चैवासितांगी च संहारिणी।

सर्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै॥

भगवती स्कन्दमाता का ध्यान स्तोत्र व कवच का पाठ करने से विशुद्ध चक्र जागृत होता है। इससे मनुष्य की समस्त इच्छाओं की पूर्ति होती है। परम शांति व सुख का अनुभव होने लगता है।

पूजन विधि- बुद्धिबल वृद्धि के लिए देवी स्कन्दमाता पर 6 इलायची चढ़ाकर सेवन करें। सामाग्री चढ़ाते समय "ब्रीं स्कन्दजनन्यै नमः" का जाप करें। उपाय मध्यान शुभमहूर्त में करें। निश्चित ही बुद्धिबल में वृद्धि होगी।

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Jyoti

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