Chaitra Navratri 2021: इस चालीसा के पाठ से छू मंतर होंगी जीवन की परेशानियां

Tuesday, Apr 13, 2021 - 03:31 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
आज से देशभर में नवरात्रि के पर्व की धूम शुरू हो चुकी है। हालांकि कई ऐसी भी जगहें हैं जहां कोरोना के कारण इस दौरान कई प्रमुख देवी मंदिरों को बंद भी किया गया है। ऐसे में बहुत से लोगों को देवी दुर्गा की पूजा घर में ही रहकर करनी होगी। ज्योतिष विशेषज्ञों का मानना है कि इस दौरान मां के हर प्रत्येक भक्त को इनकी पूजन विधि आदि के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। अन्यथा जातक इन पावन दिनों में मिलने वाले शुभ फल से वंचित रह जाते हैं। खासतौरर पर देखा जाता है इस दौरान लोग मां की विधि वत पूजा तो करते हैं, मगर सबसे आवश्यक काम करना भूल जाते हैं। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार यदि व्यक्ति नवरात्रि केे दिनों में मां की विधि वत पूजा करने के बाद आखिर में आरती के साथ इनका गुणगान करना भूल जाता है उसे जातक की तमाम पूजा निष्फल हो जाती है। 

तो वहीं ये भी कहा जाता है कि चूंकि नवरात्रि का पर्व विशेष तौर से देवी दुर्गा को समर्पित होता है, इसलिए इन 9 दिनों में जातक को मां के विभिन्न रूपों के साथ-साथ दुर्गा स्वरूप की खासतौर पर पूजा करनी चाहिए। मान्यताएं प्रचलित हैं कि इन विशेष दिनों में माता रानी के इन नौ स्वरूपों के साथ खासतौर पर देवी दुर्गा की आराधना करने से जातक की पूजा तो फलित होती ही है साथ ही साथ जातक के जीवन में समस्त संकट दूर होते हैं। तो अगर आप माता रानी की कृपा पाना चाहते हैं तो आज से लेकर नवरात्रि के समापन तक रोज़ाना निम्न दी गई दुर्गा चालीसा का पाठ अवश्य करें। 

यहां जानें प्रभावशाली दुर्गा चालीसा- 
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥

शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़कर खम्बा॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥

मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजै॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुंलोक में डंका बाजत॥

शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ संतन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥

अमरपुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें।
रिपू मुरख मौही डरपावे॥

शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥

करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।

जब लगि जिऊं दया फल पाऊं ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।
सब सुख भोग परमपद पावै॥

देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥

Jyoti

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