Chaitra Navratri 2020: मां शैलपुत्री करेंगी आपके गृह क्लेशों का अंत

Wednesday, Mar 25, 2020 - 07:30 AM (IST)

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नवरात्र के प्रथम दिन मां शैलपुत्री का पूजन होता है। ये पर्वतों के राजा हिमवान की पुत्री तथा नौ दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। विष्णु भगवान की योगनिद्रा की स्थिति में ब्रह्मा जी ने जिनकी स्तुति की थी। उन खड्ग, चक्र, गदा, धनुष, बाण, परिघ, शूल, भुशुंडी, कपाल और शंख को धारण करने वाली, सम्पूर्ण आभूषणों से विभूषित, नीलमणि के समान कान्ति युक्त, दस मुख और दस चरणवाली महाकाली का ध्यान करने से वह हमारे कुसंस्कारों, हमारी दुर्वासनाओं तथा आसुरी वृत्तियों के साथ संग्राम कर उन्हें नष्ट कर डालने की प्रथम स्थिति की ही द्योतक है।

मां शैलपुत्री का वर्ण चंद्र के समान है, इन्होंने अपने मस्तक पर स्वर्ण मुकुट धारण किया हुआ है। इनके मस्तक पर अर्धचंद्र अपनी शोभा बढ़ा रहा है। ये वृष अर्थात बैल पर सवार हैं। अतः इन्हें देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है। इन्होंने दाहिने हाथ में त्रिशूल धारण किया हुआ है तथा इनके बाएं हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित हैं।

मां शैलपुत्री कि साधना मनोवांछित लाभ के लिए कि जाती है। इनकी साधना का सर्वश्रेष्ठ समय है चंद्रोदय अर्थात सायं 5 बजे से 7 बजे के बीच, इनकी पूजा श्वे़त पुष्पों से करनी चाहिए, इन्हें मावे से बने भोग लगाने चाहिए तथा श्रृंगार में इन्हें चंदन अर्पित करना अच्छा रहता है। उत्तर-पश्चिम होकर सफ़ेद आसन पर पूजा घर में बैठें। अब अपने सामने लकड़ी के पट्टे पर सफ़ेद कपड़ा बिछाकर मां शैलपुत्री का चित्र स्थापित करें। अपने दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प करें तथा हाथ जोड़कर मां शैलपुत्र देवी का ध्यान करें। इनका ध्यान इस प्रकार है- 

ध्यान: वंदे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्। वृषारूढ़ा शूलधराम् यशस्विनीम्

मां शैलपुत्री पर धूप, दीप, सफ़ेद पुष्प, श्वेत चंदन, अक्षत, खीर का प्रसाद व रातरानी का इत्र चढ़ाएं तत्पश्चात बाएं हाथ में चावल लेकर तथा दाएं हाथ से रुद्राक्ष या सफ़ेद चंदन या मोती की माला से मां शैलपुत्री के मंत्र का यथासंभव जाप करें।

मंत्र: ॐ शैलपुत्र्यै नमः।

जाप पूरा होने के बाद दाएं हाथ में लिए हुए चावल सफ़ेद कपड़े में बांधकर रसोई घर में रखें। इस उपाय से घर में सैदेव सुख-शांति बनी रहती है। बची हुई पूजा सामग्री किसी बगीचे अथवा उद्यान में पेड़ के नीचे छोड़ दें।

Niyati Bhandari

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