आचार्य चाणक्य की ये नीतियां हर मुश्किल को करेंगी आसान

Saturday, Feb 03, 2018 - 02:31 PM (IST)

आचार्य चाणक्य प्राचीन समय के महान कूटनीतिज्ञ थे। उन्होंने मानव जीवन से संबंधित एेसी-एेसी बातें बताई है जिनपर अमल करने से व्यक्ति बड़ी आसानी से सफलता प्राप्त कर सकता है। तो आईए जानें उनकी कुछ विशेष नीतियों के बारे में-

श्लोक-
अन्नहीनो दहेद् राष्ट्रं मन्त्रहीनश्च ऋत्विज:
यजमानं दानहीनो नास्ति यज्ञसमो रिपु:।।


अर्थ: जिस देश में लोग भूखमरी का सामना कर रहे हो, वहां हवन कर उसमें घी तथा अन्न का उपयोग करना राष्ट्रद्रोह से कम नहीं माना जाता। एेसे हवन को करने वाले ब्राह्मण तथा आयोजक दोनों ही मंत्रों की शुद्ध भावना और पूजा के शुद्ध उद्देश्य को अपवित्र करते हैं। अर्थात उन्हें सबसे पहले भूखों को खाना खिलाकर दरिद्रनारायण रूप भगवान को तृप्त करना चाहिए। उसके बाद ही हवन करना या करवाना चाहिए।

श्लोक-
एक एवं पदार्थस्तु त्रिधा भवति वीक्षित:।
कुणप: कामिनी मांसं योगिभि: कामिभि: श्वभि:।।


अर्थ: किसी भी चीज को देखने के कई नजरिए होते हैं। हर आदमी दूसरे को स्वयं के नजरिए से देखना पसंद करता है। उदाहरण के लिए एक सुंदर स्त्री। एक सच्चे योगी, साधु के लिए वह एक मुर्दे के समान है जिसका कोई उपयोग नहीं है। एक कामी पुरूष के लिए वह इच्छापूर्ति का साधन है जिससे वह अपनी काम पीड़ा तथा वासना को तृप्त कर सकता है। परन्तु एक कुत्ते (या हिंसक जीव) के लिए वह न तो मुर्दा और न ही इच्छापूर्ति का साधन, बल्कि मांस के टुकड़ों के रूप में उसका भोजन है।


श्लोक-
नाऽत्यन्तं सरलैर्भाव्यं गत्वा पश्य वनस्थलीम्।
छिद्यन्ते सरलास्तत्र कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपा:।।


अर्थ: आदमी को कभी भी सीधा और सरल नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिए जंगल में जो वृक्ष सीधे, चिकने होते हैं और जिन्हें काटने में कठिनाई नहीं होती, उन्हें ही सबसे पहले काटा जाता है।


श्लोक-
यस्याऽर्थास्तस्य मित्राणि यस्याऽर्थास्तस्य बान्धवा:। 
यस्याऽर्था: स पुमांल्लोके यस्याऽर्था: स च जीवति।।


अर्थ: धन विश्व को चलाने वाली एकमात्र। जिनके पास धन है, उन्हीं के मित्र तथा संबंधी होते हैं। धनी होने के कारण उन्हें ही वास्तविक पुरूष या महिला माना जाता है। धनी होने से ही उन्हें मूर्ख होने पर भी बुद्धिमान, विद्वान तथा योग्य माना जाता है।

 

श्लोक-
शुन: पुच्छमिव व्यर्थ जीवितं विद्या विना।
न गुह्यगोपने शक्तं न च दंशनिवारणे।।


अर्थ: एक कुत्ते की पूंछ कभी भी उसके लिए गर्व का विषय नहीं होती, न हीं यह उसके शरीर से मक्खी, मच्छर उड़ाने के काम आती है। कम जानने वाले मनुष्य की बुद्धि भी इसी तरह व्यर्थ होती है। अत: उसे अधिक से अधिक सीखना चाहिए।

 

श्लोक-
क्रोधो वैवस्वतो राजा तृष्णा वैतरणी नदी।
विद्या कामदुधा धेनु: सन्तोषो नन्दनं वनम्।।


अर्थ: क्रोध मृत्यु को आमंत्रण देता है, लालच दुख को आमंत्रित करता है। विद्या दूध देने वाली गाय के समान है जो मनुष्य की हर जगह रक्षा करती है तथा संतोषी व्यक्ति कही भी आसानी से जीवन निर्वाह कर सकता है।

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