होली खेलने के लिए रंग नहीं, यहां इस्तेमाल की जाती है ये चीज़

Monday, Mar 02, 2020 - 02:18 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
होली, रंगों का ये त्यौहार न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी धूम-धाम से मनाया जाता है। धार्मिक शास्त्रों में इस त्यौहार से जुड़ी कई कथाएं व मान्यताएं वर्णित है। जिनकी मदद से इसके बारे में जाना जा सकता है। बता दें इस बार होली का त्यौहार 10 मार्च को मनाया जाएगा और होलिका दहन 09 मार्च को। होली से ठीक 1 दिन पहले रात को होलिका दहन किया जाता है। अब आप इतना तो समझ गए होंगे कि हम अपने इस आर्टिकल में होली से ही जुडी़ एक ऐसी रोचक बात बताने वाले हैं जिसे जानकर शायद आप हैरान हो जाएंगे। जी हां, रंगों से मनाई जाने वाली होली से संबंधित एक ऐसी भी मान्यता है जो हैरान कर देने वाली है। चलिए आपकी इसे जानने की जिज्ञासा को खत्म करते हुए आपको बताते हैं इस तथ्य के बारे में- 

जैसे कि सब जानते हैं सभी जगह लोग अनेक रंगों से होली खेलते हैं। तो कुछ धार्मिक स्थलों पर रंगों से होली खेली जाती है। परंतु क्या आप जानते हैं कि भारत में एक शहर ऐसा ही जहां रंगों से नहीं बल्कि मूर्दों की चिता की राख से होली खेली जाती है। जी हां, सुनने में शायद आपको अजीब लगे लेकिन ये सच है।  

बता दें ऐसा कहीं और नहीं देवों के देव महादेव की नगरी काशी में होता है। बताया जाता है बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी बनारस के मणिकर्णिका घाट में रगों से नहीं शमशान की राख से होली खेली जाती है। इस दौरान वो एक दूसरे पर चिता की राख फेंकते हैं, जिसे चिता भस्म की होली कहा जाता है। लोक मत के मुताबिक मां पार्वती के लौट आने पर भगवान शिव ने चिता की राख के साथ होली खेली थी। जिसके बाद से भगवान शिव के अनन्य भक्त चिता की राख से होली खेलने लगे।

बता दें होली के दिन चिता भस्म होली की शुरूआत श्मशान घाट के देवता महाशमशानाथ की प्रार्थना से शुरू होती है। शिव भक्त ढोल नगाड़ों के साथ श्मशान घाट की राख से होली खेलते हैं। जिसका दृश्य देखने देश-विदेश श्रद्धालु काशी पहुंचते हैं।

कहा जाता है चिता की राख से खेले जाने वाली इस होली को खेलने से शिव कृपा मनुष्य को जन्म जन्मांतरों के पापों से मुक्ति मिल जाती है।

Jyoti

Advertising