बुद्ध के दिव्य वचन आज भी हैं प्रासंगिक, दिनचर्या में शामिल करने से होगा कायाकल्प

Monday, Dec 18, 2017 - 12:25 PM (IST)

भारत भूमि पर सदा ही ऐसी विभूतियों ने जन्म लिया है, जिन्होंने मानव मात्र का कल्याण किया। उनका जीवन त्याग और बलिदान की मिसाल होता है। पावन भावना-पवित्रता, विद्वता, सत्यनिष्ठा उन्हें मानव से महामानव बना देते हैं। बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध जगतपुरुष हैं। उनके उपदेशों से संसार को सत्य अहिंसा का नव संदेश मिला। भगवान बुद्ध सारे एशिया के धर्मसम्राट थे। वे सदा से पूज्य एवं स्मरणीय रहे हैं, आज भी उनके प्रवचन अनुकरणीय हैं। उनके उपदेश व्यावहारिक ज्ञान से ओत-प्रोत हैं। अपने समय में भी उन्होंने सामाजिक कुरीतियों, अत्याचार धार्मिक प्रपंच-जातिवाद पशुबलि आदि का विरोध किया।


गया के बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ और 80 वर्ष में उनको निर्वाण प्राप्त  हुआ। कालांतर में उनके सरल नियमों को सम्राट अशोक, कनिष्क, हर्ष ने अपनाकर खूब प्रचार-प्रसार किया। उनके दिव्य वचन आज भी हमारा मार्गदर्शन करते हैं क्योंकि उनकी शिक्षाएं हमारी दिनचर्या से संबंध रखती हैं। उनकी पवित्र जीवन, शुद्ध आचरण पर बल देने वाली सरल शिक्षाएं थीं।


हमें सादा जीवन व्यतीत करना चाहिए। ज्यादा आलस्य, विलास और अति वैराग्य साधना भी जीवन के दुश्मन हैं। चित्र पूजा से चरित्रवान बनना ज्यादा अच्छा।


सम्यक जीवन बिताएं। दुखों का कारण वासना, प्रवचना, ईर्ष्या, लालच, तृष्णा हैं।


संसार के दुख मनुष्य द्वारा निर्मित हैं। हम अपने सुखों-दुखों के जिम्मेदार स्वयं हैं।


इस लोक-परलोक में सुख के साधन हैं व्यवहार, निर्वाह, दृष्टि, भाषण में सत्यनिष्ठ रहना।


जन्म से कोई छोटा-बड़ा नहीं होता। प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी इष्ट की साधना करने का पूर्ण अधिकार है। उन्होंने जीवन को शुद्ध, निर्मल तथा पवित्र बनाने का आदेश दिया।


आत्म शुद्धि शुद्ध विचारों से है। तपस्या, साधना, यज्ञ-हवन साधन हो सकते हैं परन्तु सब कुछ विचार शक्ति पर निर्भर हैं।


महात्मा बुद्ध राजा से बौद्ध बने एवं सुख-दुख, शोक, मृत्यु से ऊपर जीवन को दुखों की खान माना और सुख के सूत्र खोजे एवं दिए। दुखों का कारण इच्छाएं-वासनाएं हैं-एक के बाद दूसरी इच्छा अपूर्ण होकर कष्ट देती है। जीव इच्छा, सुख की इच्छा कष्ट के कारण बनती है।


त्याग-अपरिग्रह की भावना पर जोर दिया। इच्छाएं कम करने में सुख माना। तृष्णा का त्याग दुख दूर कर सकता है।


वह धर्म को नहीं धार्मिकता को उच्च मानते थे। मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता पुरुषार्थ से बन सकता है।


उन्होंने झूठे रीति-रिवाज व ढोंग से ऊपर उठने को कहा। पशु बलि का विरोध किया। सदाचार पर बल दिया, जात-पात से ऊपर उठने का उपदेश दिया।


ज्ञान के बिना अच्छे-बुरे की पहचान नहीं रहती अत: विद्या ग्रहण करके ज्ञानवान बनने का आग्रह किया। ज्ञान से अज्ञान का नाश होता है। ज्ञान बुद्धि को प्रखर करता है।


बुराई पर विजय अच्छाई द्वारा पाई जा सकती है। घृणा को प्यार द्वारा जीता जा सकता है। भ्रातृभाव से रहना चाहिए। लड़ाई-झगड़े छोड़ कर मिल कर रहने का आदेश दिया।


बौर्द्ध धर्म आज भी जीवित है। उसकी सरल शिक्षाएं जीवन जीने का ढंग सिखाती हैं। भगवान बुद्ध ने कठोर रीति-रिवाजों व पूजा पद्धतियों को छोड़कर सरल, पवित्र शुद्ध वचन, कर्म, जीवन पवित्रता, कर्म बल पर जोर दिया परन्तु मनुष्य जहां था वहीं है। वह आज भी हिंसा, रूढि़वाद, जात-पात, भ्रष्टाचार, व्यभिचार अज्ञान के दलदल में फंसा हुआ है। लगता है कि हम नहीं सुधरेंगे। सुधारने वाले हर युग में आएंगे, जाएंगे परन्तु मानव में आज तक सुधार नहीं आया। 

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