Dadabhai Naoroji B’day: दादा भाई नौरोजी को उनकी जयंती पर शत शत नमन

Monday, Sep 04, 2023 - 09:49 AM (IST)

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Dadabhai Naoroji B’day: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सबसे पहले स्वराज की मांग करने वाले महान उदारवादी व प्रखर देशभक्त एवं ‘द ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया’ के नाम से प्रसिद्ध विचारक, शिक्षाविद् और सामाजिक नेता दादा भाई नौरोजी ने अपना पूरा जीवन देश की सेवा में समर्पित कर दिया। हमेशा ही राष्ट्रहित के बारे में सोचने वाले दादा भाई नौरोजी ने भारतीयों को इस सच्चाई से वाकिफ करवाया कि भारत में गरीबी आंतरिक कारकों से नहीं, बल्कि अंग्रेजी शासकों की लूट की वजह से है।

दादा भाई नौरोजी का जन्म 4 सितंबर, 1825 को मुंबई के एक गरीब पारसी परिवार में पिता नौरोजी पलांजी डोरडी और माता मनेखबाई के घर हुआ था। 4 वर्ष की आयु में इनके पिता इस दुनिया को छोड़कर चल बसे थे, जिसके बाद मां ने ही इनका पालन-पोषण किया। बाल विवाह की प्रथा के कारण 11 साल की छोटी-सी उम्र में ही इनकी शादी 7 वर्षीय गुलबाई से हुई। इनकी 3 संतानें हुईं। 

नौरोजी ने शुरुआती शिक्षा तो नेटिव एजुकेशन सोसायटी स्कूल से ली थी लेकिन बाकी की पढ़ाई इन्होंने मुंबई के एल्फिंस्टन कॉलेज से पूरी की थी। इसी संस्थान में अध्यापक के रूप में जीवन आरंभ कर आगे चलकर वहीं वह गणित के प्रोफैसर हुए, जो उन दिनों भारतीयों के लिए शैक्षणिक संस्थाओं में सर्वोच्च पद था। 

वह 1855 में कारोबार के लिए इंगलैंड चले गए। इन्होंने कई धार्मिक तथा साहित्य संगठनों यथा ‘स्टूडैंट्स लिटरेरी एंड सांइटिफिक सोसाइटी’ के प्रतिष्ठाता के रूप में अपना विशेष स्थान बनाया। उस समय के समाज सुधारकों के ‘रास्त गफ्तार’ नामक प्रमुख पत्र का संपादन तथा संचालन भी इन्होंने किया।

उन दिनों भारतीय सिविल सेवाओं में सम्मिलित होने के इच्छुक अभ्यर्थियों के लिए बड़ी कठिनाई की बात यह थी कि उन्हें प्रतिकूल परिस्थितियों में ब्रिटिश अभ्यर्थियों से स्पर्धा करनी पड़ती थी। इस असुविधा को दूर करने के लिए दादा भाई ने इंगलैंड और भारत में एक साथ सिविल सर्विस परीक्षा करवाने का सुझाव दिया और इसके लिए इंगलैंड के हाऊस ऑफ कॉमन्स में उस सदन के एक सदस्य के रूप में संघर्ष और 1893 तक आंदोलन चलाया, जो स्वीकार कर लिया गया।

भारत वापस आने के बाद दादा भाई नौरोजी ने 1885 से 1888 के बीच मुंबई की विधान परिषद के सदस्य के रूप में भी काम किया था और वहीं 1886 इन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया। इसके बाद 1893 और 1906 में भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। 1892 में इन्होंने लन्दन में हुए आम चुनाव में लिबरल पार्टी की तरफ से चुनाव लड़ा और पहले ब्रिटिश भारतीय सांसद के तौर पर चुने गए। 

इन्होंने ही पहली बार स्वराज्य की मांग उठाते हुए ब्रिटिश शासन से कहा कि हम न्याय, स्वशासन चाहते है। 1905 में उन्होंने कहा था कि ‘भारत से धन की निकासी सभी बुराइयों की जड़ है, और भारतीय निर्धनता का मुख्य कारण भी है।’ 30 जून, 1917 को 91 साल की उम्र में मुम्बई में उनका निधन हो गया। 

Niyati Bhandari

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