कैसे हुआ देवी त्रिपुर सुंदरी का जन्म

Thursday, Feb 07, 2019 - 12:56 PM (IST)

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आज गुप्त नवरात्रि का तीसरा दिन आद्य महाविद्या त्रिपुर सुंदरी का होता है। देवी त्रिपुर सुंदरी अनुपम सौंदर्य, भक्तों को अभय प्रदान करने वाली, यौवनयुक्त और तीनों लोकों में विराजमान है और उन्हें कई नामों से जाना जाता है। इन्हें राज-राजेश्वरी, बाला, ललिता, मीनाक्षी, कामाक्षी, शताक्षी, कामेश्वरी कहा जाता है। अपनी सुंदरता और मोहकता से देवासुर संग्राम में असुरों को वश में कर लिया था। कहते हैं कि त्रिपुर सुंदरी की आराधना करने वाले भक्तों को लौकिक और पारलौकिक शक्तियां प्राप्त होती हैं। देवी पुराण में माता की बहुत सी शक्तियों के बारे में बात की गई है। ये सिर्फ तंत्र साधना के लिए ही नहीं बल्कि सुंदर रूप के लिए भी विख्यात जानी जाती है। आइए जानते हैं इनके स्वरूप और इसके पीछे जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में-

देवी त्रिपुर सुंदरी शांत मुद्रा में लेटे हुए सदाशिव की नाभि से निर्गत कमल-आसन पर विराजमान हैं। चतुर्रभुजी भुजाओं में देवी के पाश, अंकुश, धनुष और बाण हैं। देवी के आसन को ब्रह्मा, विष्णु, शिव और यमराज अपने मस्तक पर धारण करते हैं। देवी तीन नेत्रों से युक्त और मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करती हैं। देवी त्रिपुर सुंदरी अपने भक्तों की हर प्रकार की मनोकामना को पूरी करती है। उनकी हर विपत्ति को दूर करती हैं और उन्हें अभय प्रदान करती हैं। कहा जाता है कि देवी त्रिपूर सुंदरी की पूजा करने से आत्मिक बल, यश और कीर्ति की प्राप्ति होती है। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी त्रिपुरसुंदरी के उत्पत्ति का रहस्य, सती वियोग के पश्चात भगवान शिव सर्वदा ध्यान मग्न रहते हुए हैं। उन्होंने अपने संपूर्ण कर्म का परित्याग कर दिया था जिसके कारण तीनों लोकों के संचालन में व्याधि उत्पन्न हो रही थी। उधर तारकासुर ब्रह्मा जी से वर प्राप्त किया कि उसकी मृत्यु शिव के पुत्र द्वारा ही होगी। समस्त देवताओं ने भगवान शिव को ध्यान से जगाने के लिए कामदेव और उनकी पत्नी रति देवी को कैलाश भेजा। 

कामदेव ने कुसुम सर नमक मोहिनी वाण से भगवान शिव पर प्रहार किया, परिणामस्वरूप शिव जी का ध्यान भंग हो गया। देखते ही देखते भगवान शिव के तीसरे नेत्र से उत्पन्न क्रोध अग्नि ने कामदेव को जला कर भस्म कर दिया। कामदेव की पत्नी रति द्वारा अत्यंत दारुण विलाप करने पर भगवान शिव ने कामदेव को पुनः द्वापर युग में भगवान कृष्ण के पुत्र रूप में जन्म धारण करने का वरदान दिया और वहां से अंतर्ध्यान हो गए। सभी देवताओं और रति के जाने के पश्चात भगवान शिव के एक गण द्वारा कामदेव के भस्म से मूर्ति निर्मित की गई और उस निर्मित मूर्ति से एक पुरुष पैदा हुआ। उस पुरुष ने भगवान शिव की स्तुति करी इसके  भगवान शिव द्वारा उस पुरुष का नाम भांड रखा गया। शिव के क्रोध से उत्पन्न होने के कारण भांड, तमो गुण सम्पन्न था और वह धीरे-धीरे तीनों लोकों पर भयंकर उत्पात मचाने लगा। देवराज इंद्र के राज्य के समान ही, भाण्डासुर ने स्वर्ग जैसे राज्य का निर्माण किया तथा राज करने लगा। तदनंतर, भाण्डासुर ने स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर, देवराज इन्द्र और स्वर्ग राज्य को चारों ओर से घेर लिया। भयभीत इंद्र नारद मुनि की शरण में गए और इस समस्या के निवारण का उपाय पूछा। देवर्षि नारद ने, आद्या शक्ति की यथा विधि अपने रक्त तथा मांस से आराधना करने का परामर्श दिया। देवराज इंद्र ने देवी की आराधना की और देवी ने त्रिपुरसुंदरी स्वरूप से प्रकट हो भाण्डासुर वध कर देवराज पर कृपा की और समस्त देवताओं को भय मुक्त किया।
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