Bipin Chandra Pal birth anniversary: क्रांतिकारी विचारों के जनक थे ‘बिपिन चंद्र पाल’

Monday, Nov 07, 2022 - 11:59 PM (IST)

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Bipin Chandra Pal birth anniversary: 1857 में स्वतंत्रता संग्राम की असफल क्रांति के बाद 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी के शुरू में जब देश में स्वतंत्रता आंदोलन अपना स्वरूप लेने के लिए छटपटा रहा था, जब आजादी की लड़ाई लड़ने वाले नरम और गरम दल में बंट चुके थे, तब पंजाब के लाला लाजपत राय, महाराष्ट्र से बाल गंगाधर तिलक और बंगाल के बिपिन चंद्र पाल ‘लाल-बाल-पाल’ की तिकड़ी के रूप में गरम विचार वालों का नेतृत्व कर देशभर में लोकप्रिय हो गए।

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What is Bipin Chandra Pal New India: अंग्रेजों को हिला कर रख देने वाली इस तिकड़ी में बिपिन चंद्र पाल को क्रांतिकारी विचारों के जनक के तौर पर जाना जाता है। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की रूपरेखा तैयार करने में प्रमुख भूमिका निभाने वाली ‘लाल-बाल-पाल’ की तिकड़ी में से एक, बिपिनचंद्र पाल राष्ट्रवादी नेता होने के साथ-साथ एक शिक्षक, समाज सुधारक, वक्ता, लेखक और पत्रकार के रूप में भी प्रसिद्ध हैं।
 
When and where was Bipin Chandra Pal born: इनका जन्म 7 नवम्बर, 1858 को तत्कालीन बंगाल के सिलहट जिले के पोइली गांव में हुआ था, जो अब बंगलादेश में है। इनके पिता रामचन्द्र पाल जमींदार होने के साथ-साथ फारसी भाषा के भी विद्वान थे, जबकि माता नारायणी देवी धार्मिक विचारों वाली गृहणी थीं। इन्होंने चर्च मिशन सोसाइटी कालेज में पढ़ाई करने के बाद वहीं पर बच्चों को पढ़ाया भी। पहली पत्नी की मौत के बाद इन्होंने सभी के विरोध के बावजूद एक विधवा से शादी की, जो उस समय में बहुत ही बड़ी बात थी।

इसके कारण इन्हें परिवार से भी नाता तोड़ना पड़ा। इनके पुत्र का नाम निरंजन पाल था, जो बॉम्बे टॉकीज के संस्थापकों में से एक था। इनकी एक पुत्री भी थी, जिनके पति का नाम एस.के. डे था, जो आई.सी.एस. अफसर थे, जो बाद में केंद्रीय मंत्री पद पर विराजमान हुए।

बिपिन चन्द्र पाल ने लेखक और पत्रकार के रूप में बहुत समय तक कार्य किया। 1886 में इन्होंने सिलहट से निकलने वाले ‘परिदर्शक’ नामक साप्ताहिक में कार्य आरंभ किया।

1886 में कांग्रेस से जुड़ते ही पाल जल्दी ही एक बड़े नेता के रूप में स्थापित हो गए। सन् 1887 में कांग्रेस के मद्रास सत्र में उन्होंने अंग्रेजी सरकार द्वारा लागू किया गया ‘शस्त्र अधिनियम’ तत्काल हटाने की मांग की क्योंकि यह भेदभावपूर्ण था। जल्दी ही उनकी दोस्ती लाला लाजपत राय और बाल गंगाधर तिलक से हो गई।

Bipin chandra pal speech: स्वराज, स्वदेशी आंदोलन, बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा देश के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख हिस्से हो गए। बिपिन चन्द्र पाल एक कुशल वक्ता से साथ-साथ एक कुशल लेखक भी थे। उनके लेखों में राष्ट्रीयता के साथ-साथ धार्मिक नीतियां भी देखने को मिलती थीं। बंगाल पब्लिक ओपिनियन, द इंडिपैंडैंट इंडिया, लाहौर ट्रिब्यून, द हिन्दू रिव्यू, द न्यू इंडिया, परिदर्शक, द डैमोक्रैट, वंदेमातरम, स्वराज आदि पत्रिकाओं में इनके ऐसे इरादे साफ तौर पर झलकते थे। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैं- इंडियन नैशनलिज्म, नैशनैल्टी एंड एम्पायर, स्वराज एंड द प्रैजेंट सिचुएशन, द बेसिस ऑफ रिफॉर्म, द सोल ऑफ इंडिया, द न्यू स्पिरिट, स्टडीज इन हिन्दुइज्म आदि।

‘लाल-बाल-पाल’ की इस तिकड़ी ने 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में अंग्रेज शासन के विरुद्ध आंदोलन किया, जिसे बड़े स्तर पर जनता का समर्थन मिला।

गरम विचारों के लिए प्रसिद्ध इन नेताओं ने ब्रिटेन में तैयार उत्पादों का बहिष्कार, मैनचेस्टर की मिलों में बने कपड़ों से परहेज, औद्योगिक तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में हड़ताल आदि का अह्वान किया।

जनवरी 1907 में बिपिन ने बहिष्कार आंदोलन और स्वदेशी आंदोलन को एक प्रांत से दूसरे प्रांत तक पहुंचाया और इसके लिए वह पूर्वी बंगाल और फिर कटक, उड़ीसा, विशाखापट्टनम और आखिर में मद्रास आदि स्थानों पर गए और अपने जोशीले भावपूर्ण भाषणों के जरिए अपनी विचारधार को आगे बढ़ाया। इन्होंने 2 से 9 मई, 1907 तक मद्रास बीच पर पांच भाषण दिए, जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन की रूपरेखा, लक्ष्य एवं कार्यक्रम बारे विस्तार से समझाया।

बिपिन चन्द्र पाल में दृढ़ता के साथ विरोध प्रदर्शन करने का सामर्थ्य था, इसलिए उन्होंने स्वदेशी तथा बहिष्कार आंदोलन की पहली वर्षगांठ पर एक अंग्रेजी पत्र ‘वंदे मातरम्’ लांच करने का साहसी कदम उठाया, जिसका विषय भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास था। इस पत्र के सम्पादन के लिए अरबिंदो घोष को न्यौता दिया गया और उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार किया।

1907 में वह इंगलैंड चले गए। वहां जाकर वह क्रांतिकारी विधारधारा वाले ‘इंडिया हाऊस’ (जिसकी स्थापना श्यामजी कृष्ण वर्मा ने की थी) से जुड़ गए और आजादी के पक्ष में कार्य करते हुए अंग्रेजों की धरती पर जाकर उन्हीं को ललकारने लगे।

Which paper did Bipin Chandra Pal started: उन्होंने ‘स्वराज’ पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया। जब क्रांतिकारी मदन लाल ढींगरा ने सन् 1909 में कर्जन वाइली की हत्या कर दी, तब ‘स्वराज’ का प्रकाशन बंद कर दिया गया और लंदन में उन्हें बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा।

Bipin chandra pal death: जीवन भर राष्ट्रहित के लिए काम करने वाले बिपिन चंद्र पाल 20 मई, 1932 को भारत मां के चरणों में अपना सर्वस्व त्याग कर परलोक सिधार गए। 1958 में इनकी जन्मशती के अवसर पर इनके सम्मान और स्मृति में भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया था।

 

Niyati Bhandari

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