भ्रूण हत्या पाप नहीं महापाप है, जानें क्या कहते हैं शास्त्र

Saturday, Aug 31, 2019 - 10:49 AM (IST)

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वर्तमान युग में भ्रूण हत्या के विषय पर जागरूकता लाने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रचार किए जा रहे हैं। अखबारों व संचार माध्यम द्वारा, सभी प्रकार के प्रयत्नों द्वारा जनता को जागरूक किया जा रहा है कि भ्रूण हत्या पाप है। इसे कानूनी तौर पर व आध्यात्मिक तरीकों से रोकने का प्रयास किया जाता है। सरकार की तरफ से भी सख्त कानून बनाए व अपनाए जा रहे हैं। विभिन्न सामाजिक व धार्मिक संस्थाएं इसका प्रचार कर रही हैं। आध्यात्मिक चेतना के द्वारा जनता को जागरूक किया जाता है परन्तु यह पाप क्यों है? उस पर कोई जागरूकता व स्पष्टीकरण नहीं लाया जाता और सिर्फ पाप कह कर ही इसे विराम दे दिया जाता है।

हमारे शरीर का स्वामी मन है और मन का स्वामी मारूत अर्थात प्राणवायु है। वायु का स्वामी लय है और लय नाद पर आश्रित है अर्थात शरीर व इंद्रियों का स्वामी मन है। इसी प्रकार मन का भी स्वामी प्राणवायु है। प्राणवायु जब तक चंचल है, मन भी चंचल रहता है। प्राणवायु के स्थिर होने पर मन भी स्थिर होता है। प्राणवायु के स्थिर हुए बिना मन कभी स्थिर नहीं हो सकता। प्राणवायु को स्थिर करने की मुख्य विधि को प्राणायाम कहा जाता है। चिन्मय स्वरूप यह प्राण मनुष्य शरीर के दोनों भ्रुवों के मध्य स्थिर रूप में तथा निचले भाग में यह चंचल प्राण के रूप में स्थित रहता है। योगी जन प्राणायाम के द्वारा अपना सुषुम्रा का द्वार खोलते हैं और उसमें प्राणवायु को प्रवेश करके भूमध्य स्थान (आज्ञा चक्र) में आत्मा व परमात्मा का मिलन हठयोग के द्वारा करवाते हैं। इसे कुंडलिनी योग भी कहा जा सकता है।

इसे समझने के लिए इड़ा, पिंगला व सुषुम्रा नाड़ी को जानने की आवश्यकता है। शरीर में रीढ़ की हड्डी मेरूदंड के निचले भाग में मेरूदंड के भीतर से होते हुए भूमध्य तक सूक्ष्म नाड़ी सुषुम्रा नाड़ी गई हुई है। इसमें कुल सात चक्र होते हैं। मूलाधार से ही सुषुम्रा के बाएं से इड़ा व दाएं से पिंगला नाड़ी उठकर चक्रों से होते हुए भूमध्य में जाकर मिलती है। ये सभी सूक्ष्म नाडिय़ों अर्थात इनका कोई स्थूल, अस्तित्व नहीं होता। इन्हें भौतिक उपायों से काटना या देखना संभव नहीं है।

मां के गर्भ में नौ माह तक शिशु में यह प्राण भ्रूमध्य में तो स्थिर रहता ही है। भूमध्य के नीचे भी सुषुम्रा के अंतर्गत होने के कारण स्थिर रूप में रहता है। इस अवस्था में बच्चे की कोई चित्राकृति अर्थात मन का अस्तित्व नहीं होता तथा न ही उसे श्वसन की आवश्यकता होती है। इस अवस्था में शिशु गर्भ में अपने नाक के नथुनों से श्वास प्रवाह नहीं करता। वह समाधि अवस्था में होता है। उसकी प्राणवायु सुषुम्रा से भ्रूमध्य तक प्रवाह करती रहती है और इड़ा, पिंगला नाडिय़ों में प्राणवायु प्रवाह नहीं करती। यही कारण है कि अध्यात्म में गर्भस्थ शिशु जो समाधि अवस्था में होता है, हत्या को महापाप माना जाता है। 

इस अवस्था में शिशु के शरीर में मन नहीं होता, केवल आत्मा होती है और समाधि की अवस्था में होने के कारण आत्मा का प्रत्यक्ष संबंध परमात्मा के साथ होता है जिसको हम प्रत्यक्ष परमात्मा के साथ संबंध भी कह सकते हैं। भ्रूण हत्या के समय वह संबंध टूट जाता है और अभिशाप की शक्ल ले लेता है।

जैसे पुरातन ऋषि-मुनि समाधि टूटने पर अभिशाप दे दिया करते थे। जन्म के बाद शिशु को इड़ा, पिंगला नाड़ी प्रवाह करने लग जाती है। इस समय मन उत्पन्न होता है और वह सांसारिक हो जाता है। जब तक मन नहीं था व शिशु समाधि योग में ईश्वर के साथ आत्मिक संयोग में था परन्तु समाधि भंग होते ही अंतर्मुख से बाहरी मुख सांसारिक हो जाता है और हत्या करवाने वाला पाप का अधिकारी बन जाता है। इसलिए हम कह सकते हैं कि भ्रूण हत्या महापाप है जो प्राणी को ईश्वर से विभक्त करवा देता है और पापों का अधिकारी बना देता है।

Niyati Bhandari

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