Bhishma Ashtami 2024: भीष्म पितामह को किसने दिया था इच्छा मृत्यु का वरदान ? जानें इसके पीछे की वजह

Thursday, Feb 15, 2024 - 08:46 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Bhishma Ashtami 2024: भारत त्योहारों का देश हैं, यहां पर बहुत से त्योहार मनाए जाते हैं जो एकता और सुख-समृद्धि का प्रतीक हैं। इन्हीं में से एक है भीष्म अष्टमी। महाभारत काल में ऐसी बहुत सी घटनाएं घटित हुई हैं जो व्यक्ति में मन में बहुत से सवाल पैदा कर देती हैं। जैसे कि अर्जुन द्वारा भीष्म पितामह को बाणों की शैय्या पर लेटा देना और  पितामह भीष्म का अपनी इच्छा के अनुसार प्राण त्यागना। जिस दिन बाल ब्रह्मचारी भीष्म पितामह ने अपना देह त्यागा था उस दिन को भीष्म अष्टमी के रूप से मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 16 फरवरी को मनाया जाएगा। 

Bhishma Ashtami Significance भीष्म अष्टमी का महत्व 
भीष्म पितामह महाभारत के सबसे महान और यशस्वी योद्धा थे। इस वजह से उनकी पुण्यतिथि को भीष्म अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इसी के साथ भीष्म पितामह को अपने पिता से इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। अपनी मृत्यु के लिए उन्होंने माघ शुक्ल अष्टमी को चुना था, इसका कारण यह है कि इस समय तक सूर्य देव उत्तरायण की ओर प्रस्थान करने लगे थे। हिंदू धर्म में इस दिन को बेहद ही शुभ और खास माना जाता है। आप आप सोच रहे होंगे पितामह ने क्यों इसी दिन का चुनाव किया और भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान किस तरह प्राप्त हुआ था। तो चलिए जानते हैं इसके पीछे की वजह। 

Mahabharat Katha पितामह को कैसे मिला इच्छा मृत्यु का वरदान 
किवदंतियों के अनुसार भीष्म पितामह राजा शांतनु और देवी गंगा के पुत्र थे। जन्म के बाद देवी गंगा ने उनका नाम देव व्रत रखा। महर्षि परशुराम से शास्त्र विद्या सीखने के बाद मां गंगा ने उन्हें अपने पिता के पास भेज दिया। इसके बाद राजा शांतनु ने देव व्रत को हस्तिनापुर का राजा बना दिया है। कुछ समय के बाद देव व्रत के पिता यानी राजा शांतनु को सत्यवती नामक एक युवती से प्रेम हो गया। दोनों के मिलकर विवाह करने का विचार किया लेकिन सत्यवती के विवाह के लिए एक शर्त रखी। शर्त कुछ यूं थी की सत्यवती और राजा शांतनु का पुत्र ही हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी बनेगा। पिता की इच्छा को पूर्ण करने के लिए पितामह ने सारा राज पाठ छोड़ दिया और पूरा जीवन विवाह न करने का प्राण लिया। मान्यताओं के अनुसार इस प्रण के कारण ही देवव्रत का नाम भीष्म हो गया। 

इतना त्याग देखने के बाद राजा शांतनु ने खुश होकर अपने पुत्र और इच्छा मृत्यु का वरदान दे दिया। इसके बाद जब महाभारत हुई तब पितामह की यही इच्छा थी की उनकी मृत्यु उस समय में हो जब जब सूर्य उत्तरायण हो। लेकिन जिस दिन पितामह को अर्जुन द्वारा बाण लगा था उस समय में सूर्य दक्षिणायन में था। उसके बाद जब सूर्य देवता दक्षिणायन से उत्तरायण हुए तब पितामह ने अपनी इच्छा अनुसार अपना शरीर त्याग दिया। 

मान्यताओं के अनुसार जिस व्यक्ति की देह उत्तरायण के दिन संसार को छोड़ती है, उस जातक को अंत समय में मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी कारण से उत्तरायण के दिन भीष्म अष्टमी मनाई जाती है। कहते हैं कि जो व्यक्ति इस दिन पितामह की आराधना करता है उसे संतान की प्राप्ति होती है। 


 

Prachi Sharma

Advertising