भैरव बाबा होंगे प्रसन्न तभी मिलेगा भगवान शिव और मां दुर्गा के पूजन का पूरा फल

Tuesday, Nov 15, 2016 - 09:27 AM (IST)

विष्णु के अंश भगवान शिव के पांचवें स्वरूप शिव के सेनाध्यक्ष श्री भैरवनाथ को महाकाल तथा काल भैरव के नाम से भी जाना जाता है। इनकी उपासना से सभी प्रकार की दैहिक, दैविक, मानसिक परेशानियों से मुक्ति मिलती है। भोले भंडारी शिव भोलेनाथ की पूजा से पूर्व काल भैरव की पूजा होती है। ऐसा वरदान भोलेनाथ ने काल भैरव को दे रखा है। इन्हें उग्र देवता माना जाता है मगर शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए इन्हें देवताओं का कोतवाल भी माना जाता है। श्री काल भैरव अत्यंत कृपालु एवं भक्त वत्सल हैं। जो अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने के लिए तुरंत पहुंच जाते हैं। ये दुखों एवं शत्रुओं का नाश करने में समर्थ हैं। इनके दरबार में की गई प्रार्थना व्यर्थ नहीं जाती। शिव स्वरूप होने के कारण शिव की ही तरह शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। भक्त को प्रसन्न हो मनचाहा वरदान दे देते हैं। भगवान शिव की सेना में 11 रुद्र, 11 रुद्रिणियां, चौंसठ योगिनियां, अनगिनत मातृकाएं तथा 108 भैरव हैं। कलिका पुराण में वर्णन है कि बालक गणेश ने सिर कटने से पहले इन्हीं से युद्ध किया था इसीलिए भोलेनाथ इन्हें वीरभद्र के नाम से भी पुकारते हैं।


मां दुर्गा के सिपहसालार भी काल भैरव ही हैं। शिव का अवतार होने के कारण मां दुर्गा के अत्यंत प्रिय, आदि शक्ति महादेवी दुर्गा, चंडिका, काली गढ़देवी, त्रिपुर सुंदरी व अम्बा का मंदिर जहां भी होगा वहीं काल भैरव भी उन्हीं के साथ होते हैं। मान्यता है कि मां की पूजा-अर्चना के उपरांत अगर काल भैरव की पूजा न की जाए तो मां से भी ये नाराज हो जाते हैं कि आपने अपने भक्त को मेरे बारे में क्यों नहीं बतलाया। जब आदि शक्ति को शिव ने शिव शक्ति से समाहित किया तो उन्होंने ही काल भैरव को मां के साथ रहने का आदेश दिया इसीलिए काल भैरव सदा मां के ही साथ रहते हैं। इनके दर्शन करने से ही मां की पूजा-अर्चना सफल मानी जाती है।


इन्हें काशी के कोतवाल भी कहा जाता है। इनका वाहन कुत्ता है। इनके  हाथ में त्रिशूल, खड्ग तथा दंड रहता है। रक्तप्रिय दुष्टों का नाश करने के लिए ये युद्धभूमि में सदा उपस्थित रहते हैं। इनको दूध या हलवा अत्यंत प्रिय है इसीलिए भक्तजन इन्हें यह प्रसाद चढ़ाते हैं।


भगवान भोलेनाथ ने इन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया है तथा काल भैरव जी अदृश्य रूप में ही पृथ्वी पर काशी नगरी में निवास करते हैं। काल भैरव का शृंगार अन्य देवताओं के विपरीत भिन्न ढंग से होता है। उनकी कोई मूर्त नहीं। एक तिकोने पत्थर को ही प्रतीक स्वरूप मानकर पूजा जाता है। भैरव जी को चमेली के तेल में सिंदूर डालकर चोला चढ़ाया जाता है। चमेली के तेल में ही काजल मिलाकर काले रंग का चोला भी बनाया जाता है। भैरव जी तो श्रद्धा के भूखे हैं। मां की आराधना उपरांत अगर इनके दर्शन न किए जाएं तो मां की पूजा भी निष्फल मानी जाती है।

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