Bhai Parmanand death anniversary: क्रांतिकारियों के प्रेरणा स्त्रोत भाई परमानंद जी को शत्-शत् नमन

Friday, Dec 08, 2023 - 10:20 AM (IST)

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Bhai Parmanand death anniversary 2023: देशभक्ति, राजनीतिक दृढ़ता तथा स्वतंत्र विचारक के रूप में तथा कठिन और संकटपूर्ण स्थितियों का डटकर सामना कर कभी न विचलित होने वाले थे स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी भाई परमानन्द। इनका जन्म 4 नवम्बर, 1876 को संयुक्त पंजाब के जिला झेलम (अब पाकिस्तान ) के करियाला ग्राम के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। इनके पिताजी का नाम ताराचन्द था। इसी पावन कुल के भाई मतिदास ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए गुरु तेगबहादुर जी के साथ दिल्ली पहुंचकर औरंगजेब की चुनौती स्वीकार कर बलिदान दिया था।

1902 में परमानन्द जी ने स्नातकोत्तर की उपाधि लेकर लाहौर के दयानन्द एंग्लो महाविद्यालय में शिक्षक के तौर पर नियुक्ति प्राप्त की। महात्मा हंसराज ने इन्हें भारतीय संस्कृति का प्रचार करने के लिए अक्तूबर, 1905 में अफ्रीका भेजा। वहां यह प्रमुख क्रांतिकारियों सरदार अजीत सिंह, सूफी अम्बा प्रसाद आदि के संपर्क में आए। अफ्रीका से भाई परमानंद जी लंदन जाकर क्रान्तिकारियों श्यामजी कृष्ण वर्मा तथा विनायक दामोदर सावरकर के सम्पर्क में आए।

1907 में भारत लौट दयानन्द वैदिक महाविद्यालय में पढ़ाने के साथ-साथ वह युवकों को क्रान्ति के लिए प्रेरित करने लगे। इन्हें पेशावर में क्रान्ति का नेतृत्व करने का जिम्मा दिया गया था, जिसके कारण 25 फरवरी, 1915 को लाहौर में गदर पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ इन्हें भी गिरफ्तार करने के बाद उम्रकैद की सजा देकर दिसम्बर, 1915 में अण्डमान (काला पानी) भेज दिया गया।
अण्डमान में इन्हें गीता के उपदेशों ने सदैव कर्मठ बनाए रखा। जेल में श्रीमद्भगवद्गीता पर लिखे गए लेखों के आधार पर उन्होंने बाद में ‘मेरे अन्त समय का आश्रय’ नामक ग्रन्थ की रचना की।

जेल से मुक्त होकर भाई जी ने पुन: लाहौर को अपना कार्य क्षेत्र बनाया। लाला लाजपतराय जी ने राष्ट्रीय विद्यापीठ (नैशनल कालेज) की स्थापना की तो उसका कार्यभार इन्हें सौंपा गया जहांं भगत सिंह और सुखदेव आदि पढ़ते थे। भाई जी ने उन्हें भी सशस्त्र क्रान्ति के यज्ञ में आहुतियां देने के लिए प्रेरित किया। भाई जी ने ‘वीर बन्दा वैरागी’ नामक पुस्तक की रचना की।

बाद में आप हिंदू महासभा में सम्मिलित हो गए। महामना पंडित मदनमोहन मालवीय का निर्देश एवं सहयोग आपको बराबर मिला। भारत विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण की घोषणा हुई तो भाई जी के हृदय में एक ऐसी वेदना पनपी कि ये उससे उबर नहीं पाए तथा आजादी के कुछ माह बाद 8 दिसम्बर, 1947 को इन्होंने इस संसार से विदा ले ली।  

Niyati Bhandari

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