Bhagavad Gita- आत्मा के जन्म लेने का कोई इतिहास नहीं है...

Wednesday, Feb 03, 2021 - 09:36 AM (IST)

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श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप व्याख्याकार : स्वामी प्रभुपाद

साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता

‘शरीर में 6 प्रकार के रूपांतर होते हैं’

न जायते म्रियते वा कदाचित नायं भूत्वा भविता वा न भूय:। अजो नित्य: शाश्वतोऽयं शरीरे।



अनुवाद : आत्मा के लिए किसी भी काल में न तो जन्म है न मृत्यु। वह न तो कभी जन्मा, न जन्म लेता है और न जन्म लेगा। वह अजन्मा, नित्य, शाश्वत तथा पुरातन है। शरीर के मारे जाने पर वह मारा नहीं जाता।

तात्पर्य : गुणात्मक दृष्टि से परमात्मा का अणु-अंश परम से अभिन्न है। वह शरीर की भांति विकारी नहीं है। कभी-कभी आत्मा को स्थायी या कूटस्थ कहा जाता है। शरीर में छह प्रकार के रूपांतर होते हैं। यह माता के गर्भ से जन्म लेता है, कुछ काल तक रहता है, बढ़ता है कुछ प्रभाव दिखाता है, धीरे-धीरे क्षीण होता है और अंत में समाप्त हो जाता है किन्तु आत्मा में ऐसे परिवर्तन नहीं होते।

आत्मा अजन्मा है किन्तु चूंकि वह भौतिक शरीर धारण करता है, अत: शरीर जन्म लेता है। आत्मा न तो जन्म लेता है, न मरता है जिसका जन्म होता है उसकी मृत्यु भी होती है और चूंकि आत्मा जन्म नहीं लेता अत: उसका न तो भूत है, न वर्तमान या भविष्य। वह नित्य, शाश्वत तथा सनातन है अर्थात उसके जन्म लेने का कोई इतिहास नहीं है।



हम शरीर के प्रभाव में आकर आत्मा के जन्म, मरण आदि का इतिहास खोजते हैं। आत्मा शरीर की तरह कभी भी वृद्ध नहीं होता, अत: तथाकथित वृद्ध पुरुष भी अपने में बाल्यकाल व युवावस्था जैसी अनुभूति पाता है। शरीर के परिवर्तनों का आत्मा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। आत्मा वृक्ष या किसी अन्य भौतिक वस्तु की तरह क्षीण नहीं होता। आत्मा का कोई आनुषंगिक परिणाम पदार्थ भी नहीं होता। शरीर की उपसृष्टि संतानें हैं और वे भी व्यष्टि आत्माएं हैं और शरीर के कारण वे किसी न किसी की संतानें प्रतीत होते हैं। शरीर की वृद्धि आत्मा की उपस्थिति के कारण होती है किन्तु आत्मा के न तो कोई उपवृद्धि है न ही उसमें कोई परिवर्तन होता है। अत: आत्मा शरीर के छ: प्रकार के परिवर्तन से मुक्त है।

(क्रमश:)

Niyati Bhandari

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