देश-विदेश में है इस ग्रंथ की धूम, चुटकियों में होती हैं समस्याएं हल

Monday, Jan 06, 2020 - 07:39 AM (IST)

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गीता लोकप्रिय ग्रंथ है वेदों की लोकप्रियता भी आसमान पर पहुंची। लेकिन गीता ने वेदों की लोकप्रियता को भी पीछे छोड़ा। गीता की लोकप्रियता ने विश्व में नए क्रीतिमान बनाए। भारत में अनेक ग्रंथों को गीता बताने का चलन बढ़ा। गणेश पुराण के क्रीड़ाखंड के एक भाग को ‘गणेशगीता’ कहा गया। कूर्मपुराण के आखिरी हिस्से ‘ईश्वरगीता’ कहलाए। योगवशिष्ठ का भी एक भाग ‘ब्रह्मगीता है।’ विष्णु पुराण के तीसरे हिस्से में ‘यमगीता’ है। अध्यात्म रामायण के उत्तरकांड में ‘रामगीता’ है। महाभारत में पिंगल गीता, पराशरगीता और हंसगीता आदि है। गीता की लोकप्रियता के कारण ही ‘कपिलगीता’, पांडवगीता, व्यासगीता आदि ग्रंथ भी चर्चित हुए। अर्जुन और श्रीकृष्ण के मध्य हुए संवाद की भी एक और गीता है। उसे ‘अनुगीता’ कहते हैं। भगवद्गीता महाभारत युद्ध के ठीक पहले का संवाद है। ‘अनुगीता’ युद्ध के बाद हुई बातचीत है। अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा ‘आपने युद्ध के प्रारंभ में मुझे जो ज्ञान दिया था, उसे मैं भूल गया हूं। कृपया उसे दोबारा बताएं।’

आग्रह मजेदार हैं। अर्जुन गीता सुनकर ही कर्मप्रवृत्त हुए। युद्ध हो गया। विजय मिल गई। पहले वाली गीता विषादग्रस्त चित्त से सुनी गई थी। श्रीकृष्ण ने कहा उस समय मैंने योगयुक्त अंत:करण असंभव है। हरेक विचार और दर्शन के उगने की एक पृष्ठभूमि होती है। युद्ध के पहले अर्जुन विषादग्रस्त थे। श्रीकृष्ण ने अर्जुन के विषाद, जिज्ञासा और सभी तर्कों का समाधान किया-गीता के जन्म में अर्जुन के विषाद, प्रश्र और जिज्ञासा की भूमिका है लेकिन श्रीकृष्ण ने अर्जुन का निवेदन स्वीकार किया। कुछ मोटी-मोटी बातें कहीं। यही ‘अनुगीता’ है।  लेकिन मूल गीता में विश्वदर्शन की सारी अनुभूतियां हैं, कर्म हैं, सांख्य हैं, भक्ति है, ऋग्वेद की परम्परा है, उपनिषदों का सार है।

मार्क्सवादी चिंतक डा. रामविलास शर्मा ने गीता की प्रशंसा की है सबसे प्रभावशाली अंश वे हैं जहां योग का वर्णन है। दुख में उद्विग्नता नहीं, सुख में प्रीति नहीं। इस धारणा की प्रतिध्वनियां यूरोप में दूर-दूर तक सुनाई देती हैं। दार्शनिक स्तर पर गीता का अंतर्राष्ट्रीय महत्व है।

महात्मा गांधी ने भी 1925 में ‘यंग इंडिया’ में लिखा था कि ‘‘जब निराशा मेरे सामने आ खड़ी होती है और जब बिल्कुल एकाकी मुझको प्रकाश की कोई किरण नहीं दिखाई पड़ती, तब मैं गीता की शरण लेता हूं। कोई न कोई श्लोक मुझे ऐसा दिखाई पड़ जाता है कि मैं विषम विपत्तियों में भी तुरन्त मुस्कराने लगता हूं, मेरा जीवन विपत्तियों से भरा रहा है और यदि वे मुझ पर अपना कोई दृश्यमान, अमिट चिन्ह नहीं छोड़ जा सकीं तो इसका सारा श्रेय भगवद्गीता की शिक्षाओं को ही है।’’ 

तिलक जी गांधी जी के अग्रज थे, बहुपठित थे।  वह गीता रहस्य में व्याख्याता थे। दर्शन के प्रकांड विद्वान थे।  उन्होंने लिखा, ‘‘श्रीमद्भागवद्गीता प्राचीन ग्रंथों में शुद्ध हीरा है। पिंड-ब्रह्मांड-ज्ञान सहित आत्मविद्या के गूढ़ और पवित्र तत्वों के आधार पर मनुष्यमात्र के पुरुषार्थ की अर्थात आध्यात्मिक पूर्णावस्था की पहचान करा देने वाला, भक्ति और ज्ञान का मेल कराके इन दोनों का शास्त्रोक्त व्यवहार के साथ संयोग करा देने वाला और दुखी मनुष्य को शांति देकर निष्काम कर्तव्य के आचरण में लगाने वाला गीता के समान बाल-बाल ग्रंथ, संस्कृत की कौन कहे, समस्त संसार के साहित्य में नहीं मिल सकता।’’

यूरोपीय विद्वान एडविन अर्नाल्ड ने गीता पर ग्रंथ लिखा-सेलेशियन सांग। उसने गीता के भाग्यकार पूर्ववर्ती विद्वानों की प्रशंसा की और लिखा, ‘‘मैं इस आश्चर्यजनक काव्य (गीता) का अनुवाद करने का साहस कर रहा हूं, वह केवल इन विद्वानों के परिश्रम से उठाए हुए लाभ की स्मृति रूप में है और इसका दूसरा कारण यह भी है कि भारतवर्ष के इस सर्वप्रिय काव्यमय दार्शनिक ग्रंथ के बिना अंग्रेजी साहित्य निश्चय ही अपूर्ण रहेगा।’’

बंगाल में सन् 1784 में एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना हुई। सोसाइटी की प्रेरणा से चार्ल्स विलिकिंस ने गीता का अनुवाद किया। गवर्नर जनरल वारेन हैसिंट्ग्स ने इस कृति की लिखित प्रशंसा की थी।

डा. राधाकृष्णन ने गीता के अनुवाद (परिचय पृष्ठ 13) में लिखा, ‘‘भगवद्गीता कोई गुह्य ग्रंथ नहीं है जो विशेष रूप से दीक्षित लोगों के लिए लिखा गया हो और जिसे केवल वे ही समझ सकते हों अपितु एक लोकप्रिय काव्य है जो उन लोगों की भी सहायता करता है जो अनेक और परिवर्तनशील वस्तुओं के क्षेत्र में भटकते फिर रहे हैं।’’ गीता सभी दर्शनों का सार है। इसे विज्ञान की तरह पढऩे, दर्शन की तरह सोचने की अभिलाषा स्वाभाविक है।

डा. वासुदेवशरण अग्रवाल भी लिखते हैं, ‘‘इसमें संदेह नहीं कि गीता मानव-जीवन की मौलिक समस्याओं की व्याख्या करने वाला ऐसा परिपूर्ण काव्य है।’’

गीता ने सारी दुनिया को प्रभावित किया। इसका प्रभाव चीन और जापान तक पड़ा। ‘जर्मन धर्म’ के अधिकृत भाष्यकार जे.डब्ल्यू. होअर ने गीता का महत्वपूर्ण उल्लेख किया। होअर ने लिखा, ‘‘यह सब कालों में सब प्रकार के धार्मिक जीवन के लिए प्रामाणिक है। इसमें इंडोजर्मन धार्मिक इतिहास के महत्वपूर्ण दौर का प्रामाणिक निरूपण है।’

डा. राधाकृष्णन के अनुसार ‘‘बौद्ध धर्म की महायान शाखा के दो प्रमुख ग्रंथों ‘महान श्रद्धोपत्ति’ और ‘संद्धर्म पुंडरीक’ पर गीता का प्रभाव है।’’

Niyati Bhandari

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