लालच में आने वाले हर डॉक्टर के लिए सबक है ये कहानी

Thursday, Dec 03, 2020 - 10:03 AM (IST)

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Motivational Story- बहुत पहले किसी गांव में एक गडरिया रहता था। गांव वाले उसे सुमेरा कह कर बुलाते थे। एक दिन की बात है। रोज की तरह सुमेरा जंगल में भेड़-बकरियां चरा रहा था। पास ही एक ऊंची चट्टान थी। उसके नीचे एक खड्ड थी। एकाएक तेज हवा चलने लगी। वह संभल नहीं पाया और धड़ाम से खड्ड में जा गिरा। खड्ड में गिरने से उसको चोटें लगीं, वह बुरी तरह कराहने लगा। तभी उसने देखा, खड्ड के एक कोने से रोशनी की एक छोटी सी किरण उभरी। देखते ही देखते वह पूरा प्रकाश बन गई।
 

प्रकाश में से एक परी निकली और बोली, ‘‘इतने जोर से क्यों रो रहे हो? तुमने मेरी नींद खराब कर दी।’’

‘‘मेरे शरीर में भयंकर दर्द है। क्या मैं रोऊं भी नहीं?’’ सुमेरा ने सिसकते हुए कहा।

खड्ड में एक छोटा सा सुनहरे रंग का पौधा उगा हुआ था। सुमेरा का ध्यान उस ओर नहीं गया था। परी ने वह पौधा जड़ से उखाड़  कर सुमेरा के शरीर पर मला। सुमेरा का दर्द एकदम जाता रहा। वह तत्काल भला चंगा होकर उठकर खड़ा हुआ।

परी जाने लगी तो सुमेरा ने आगे बढ़कर उसका एक पंख पकड़ लिया। बोला, ‘‘परी रानी, जाओ मत।’’

परी बोली, ‘‘मुझे जाना ही होगा।’’

‘‘अगर जाना ही है तो यह पौधा मुझे देती जाओ।’’

सुमेरा ने कहा, ‘‘मैं इससे दूसरे लोगों की बीमारियां दूर करूंगा।’’
 

‘‘ठीक है। यह पौधा मैं तुम्हें देती हूं किन्तु एक शर्त है। तुम यह कार्य नि:स्वार्थ भाव से या बिना किसी लालच के करोगे। यदि पौधे को अपना धन कमाने का जरिया बनाया तो मैं इसे उसी दिन तुमसे ले लूंगी।’’

‘‘मैं कसम खाता हूं कि इस काम के बदले मैंं किसी से कुछ नहीं लूंगा। एक पैसा भी नहीं।’’ सुमेरा ने परी को आश्वस्त किया।

सुमेरा की बात पर विश्वास कर परी प्रसन्न भाव से वह पौधा उसे देकर गायब हो गई। सुमेरा बड़ा खुश हुआ। वह खड्ड से बाहर आया। उस दिन के बाद गांव में कोई भी आदमी बीमार पड़ता तो सुमेरा पलक झपकते ही उसे ठीक कर देता।

एक रात गांव में एक अजीब घटना घटी। एक स्त्री घर में खाना बना रही थी। पता नहीं कैसे उसके कपड़ों में आग लग गई। वह बुरी तरह जल गई। लोग उसे बैलगाड़ी द्वारा नगर के अस्पताल में ले जाने की तैयारी कर रहे थे कि उसी समय सुमेरा वहां पहुंच गया।

उसने पूछा, ‘‘क्यों भाइयो! क्या हो गया इसे?’’

‘‘यह खाना बनाते समय बुरी तरह से जल गई है। इलाज कराने के लिए शहर के अस्पताल में ले जा रहे हैं।’’ लोगों ने कहा।

‘‘इसकी कोई जरूरत नहीं। मैं इसे अभी ठीक किए देता हूं।’’

यह कह कर सुमेरा ने उस पौधे की जड़ उस स्त्री के जले हुए अंगों पर मली। देखते ही देखते स्त्री बिल्कुल ठीक हो गई। उसके जले हुए अंगों की पीड़ा जाती रही और शरीर पर पड़े फफोले भी मिट गए। लोग सुमेरा के चमत्कार को देख कर आश्चर्य में पड़ गए।’’

पास के गांव में एक साहूकार रहता था। उसकी बेटी बीमार थी। शहर में हर तरह के इलाज करवाने के बाद भी उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था। साहूकार का अब तक हजारों रुपया खर्च हो चुका था। उसने सुमेरा के विषय में सुना तो वह अपनी बेटी को बैलगाड़ी में बैठाकर सुमेरा के यहां पहुंचा। सुमेरा ने उसकी बेटी के शरीर पर उस पौधे की जड़ मली तो उसकी बेटी कुछ ही देर में भली-चंगी हो गई।

साहूकार बहुत खुश हुआ। उसने कहा, ‘‘सुमेरा महाराज! आपके उपचार के कितने पैसे दूं?’’

‘‘मैं इस काम के बदले कोई पैसे नहीं लेता।’’ सुमेरा ने कहा।

‘‘नहीं महाराज! इस महान कार्य के बदले आपको कुछ तो लेना ही चाहिए।’’

कहते साहूकार ने सौ रुपए उसके चरणों में रख दिए और हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।

सुमेरा सौ रुपए देख कर चकराया। उसने मन में सोचा, ‘‘इस चमत्कार से तो सैंकड़ों रुपए कमाए जा सकते हैं।’’

उसने मन में निश्चय कर लिया कि कल से जो भी उसके पास इलाज के लिए आएगा, वह उससे इलाज की कीमत वसूल करेगा।
 

सुबह हुई। लोग उसके पास इलाज के लिए आए। उनमें उसका एक पड़ोसी भी था जो सारी रात बुखार से तड़पता रहा था। सुमेरा ने उससे कहा, ‘‘मैं तुम्हें ठीक तो कर दूंगा लेकिन बदले में तुम्हें मेरे इलाज की कीमत अदा करनी पड़ेगी। तुम मेरे पड़ोसी हो, इसलिए तुमसे सिर्फ 10 रुपए ले लूंगा औरों से तो बीस रुपए वसूलता हूं। जिसको इलाज करवाना हो वह रुके। बाकी यहां भीड़ इकट्ठी न करें। अब मैं मुफ्त में किसी का इलाज नहीं करूंगा।’’

जिनके पास पैसे थे वे रुक गए जिनके पास नहीं थे,  वे बेचारे चले गए। कुछ ही दिनों में सुमेरा मालदार हो गया। बिना पैसे के इलाज का तो उसके यहां कोई मतलब ही नहीं था।

अब तो उसने एक तरह से मरीजों  को लूटना शुरू कर दिया। एक औरत अपने बीमार पति को लेकर उसके इलाज के लिए आई थी। उसका पति बेहोश पड़ा हुआ था।

सुमेरा ने उससे कहा, ‘‘पैसे लाई हो इलाज के लिए? नहीं लाई तो चलती बनो। मैं मुफ्त में किसी का इलाज नहीं करता।’’

वह औरत बहुत गिड़गिड़ाई, हाथ जोड़े, पर सुमेरा पर कोई असर नहीं हुआ। रोती-बिलखती वह अपने बीमार पति को लेकर वापस लौट गई। शाम हुई। सुमेरा सोने के लिए लेट गया पर उसे नींद नहीं आई। उसे डर था कि कहीं पौधा लेने के लिए परी न आ जाए। उसने उठकर पौधे को संदूक में रखा और ताला लगा कर चाबी अपने सिरहाने रख ली। फिर उसने सोने की कोशिश की, किन्तु बहुत कोशिश करने पर भी उसे नींद नहीं आई।

आधी रात के समय कमरे के एक कोने में प्रकाश की एक नन्ही सी लौ उभरने लगी। देखते ही देखते कमरे में उजाला छा गया। प्रकाश में वही परी प्रकट हुई, जिसने सुमेरा को वह पौधा दिया था।

परी को देखते ही सुमेरा ने सिरहाने रखी संदूक की चाबी झट से उठा ली और मुट्ठी में कसकर बंद कर ली। यह देखकर परी मुस्कराई। वह संदूक के पास पहुंची। उसने संदूक को हाथ से स्पर्श किया तो संदूक का ताला अपने आप खुलकर नीचे जा गिरा। परी ने संदूक खोला और वह पौधा निकाल लिया। पौधा लेकर परी जैसे ही जाने को हुई, सुमेरा जल्दी से उठा और उसने परी के पंख पकड़ लिए। बोला, ‘‘तुम्हारी यह हिम्मत! मेरे घर में घुसकर मेरी चीज चुरा ली। लाओ, मेरा पौधा मुझे दो।’’
 

‘‘नहीं।’’ परी बोली ‘‘अब कोई लाभ नहीं। अब तुम इस पौधे को अपने पास रखने योग्य नहीं रहे। तुममें स्वार्थ और लालच भर गया है। मेरे पंख छोड़ दो, मुझे जाना है।’’

सुमेरा बोला, ‘‘मैं क्या तुमसे डरता हूं। तुम मेरा पौधा लौटा दो तो मैं तुम्हारे पंख छोड़ दूंगा।’’ परी का चेहरा एकदम क्रोध से भर उठा। उसने अपना हाथ ऊपर उठाया। उसके हाथ में एक चमक उभरी। सुमेरा को लगा जैसे उसके सारे शरीर में आग लग गई हो। उसकी पकड़ ढीली पड़ गई और वह धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ा।

‘‘लालची व्यक्ति कभी सुखी नहीं रहता।’’ कह कर परी चली गई।

सुमेरा की जादुई शक्ति समाप्त हो गई। साथ ही उसका सुख चैन भी चला गया।  किसी ने सच ही कहा है, ‘लालच बुरी बला है।’      

(राजा पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित ‘परियों की कहानियां’ से साभार)
 
 

Niyati Bhandari

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