सुंदरता नहीं ज्ञान पर निर्भर करती है आपकी की बुद्धिमता

Saturday, Dec 21, 2019 - 11:48 AM (IST)

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संस्कृत के महान कवि कालिदास बहुत कुरूप थे। एक बार वह सम्राट विक्रमादित्य के दरबार में अपनी रचना सुना रहे थे। हर ओर से प्रशंसा के फूल बरस रहे थे कि अचानक सम्राट विक्रमादित्य ने सबको चुप करा दिया। जब दरबारी चुप हुए तो विक्रमादित्य ने कालिदास से पूछा, ''आपकी बुद्धिमता और विद्वता नि:संदेह अद्वितीय है। इसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम ही पड़ती है मगर आपको देखकर हमेशा मन में एक सवाल उठता है। आपका शरीर और रूप-रंग बुद्धिमता और विद्वता के अनुरूप ही सुंदर क्यों नहीं है?"


उस समय तो कालिदास ने इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया और सम्राट के सामने चुप रहना ही उचित समझा। बात आई-गई हो गई। एक शाम सम्राट बाग में बैठे थे। गर्मी के दिन थे और साहित्य चर्चा चल रही थी। महाकवि कालिदास भी पास ही बैठे थे। इसी समय अचानक सम्राट को प्यास लगी। सम्राट ने पानी के लिए आवाज लगाई। सम्राट को प्यास से व्याकुल देख कालिदास उठे और खुद ही दो सुराहियों को उठा लाए। उनमें से एक सुराही सोने की थी और दूसरी मिट्टी की थी। कालिदास ने पहले सोने की सुराही वाला जल एक बर्तन में डाला और सम्राट को पीने के लिए दिया।

गर्मी के कारण जल ठंडा ही नहीं हुआ था। सम्राट को अच्छा नहीं लगा। कालिदास ने मिट्टी की सुराही वाला जल सम्राट को दिया जोकि मीठा और ठंडा था। सम्राट प्रसन्न हुए और पूछने लगे, ''मिट्टी की सुराही सोने की सुराही से सुंदर नहीं है, फिर भी उसका पानी मीठा और ठंडा क्यों है?"

इस पर महाकवि कालिदास ने विनम्रतापूर्वक कहा, ''महाराज, जिस प्रकार शीतलता और मिठास बर्तन की सुंदरता और बनावट पर निर्भर नहीं करती, उसी प्रकार विद्वता और बुद्धिमता शरीर के रूप-रंग पर निर्भर नहीं करती।"

कालिदास का उत्तर सुनकर सम्राट को अपने पुराने प्रश्र का उत्तर मिल गया।


 

Jyoti

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