Baisakhi 2020: इस त्यौहार के साथ जुड़ी हैं ढेरों कथाएं...
Monday, Apr 13, 2020 - 06:06 AM (IST)
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बैसाख महीने के चढ़ने के साथ ही जीवों को सर्दी से छुटकारा मिल जाता है। मौसम में कुछ बदलाव आ जाते हैं, किसान भाइयों के खेतों में गेहूं की फसलें पकती दिखाई देने लग पड़ती हैं। किसानों को बैसाख के महीने में अपनी कई दिनों की अनथक मेहनत और सेवा का फल गेहूं की सुनहरी बालियों को देख कर बेहद खुशी होती है। किसानों ने गेहूं की फसल पर कई आशाएं पूरी होने की आशा लगाई होती है। साहूकारों के साथ वायदे किए होते हैं कि गेहूं मंडी में बेच कर ब्याज और मूल धन वापस कर देंगे।
कई किसानों ने गेहूं की कमाई से अपने बेटी-बेटों के विवाह भी करने होते हैं। जब बैसाख महीना चढ़ता है, किसान गेहूं पकने की खुशी में उसे संभालने से पहले बैसाखी के मेले में उत्साहपूर्वक शामिल होता है। ढोल-नगाड़े बजते हैं, पंजाबी गबरू भंगड़ा डाल कर पंजाब की धरती को चार-चांद लगाते, भंगड़े के जौहर दिखा कर आनंद मना रहे होते हैं तो पंजाबी मुटियारें, बहनें भी बोलियों के सुर पर नाच-नाच कर धरती हिला रही होती हैं।
बैसाखी का मेला भारत में खास महत्व रखता है क्योंकि यह सभी का सांझा त्यौहार है। बैसाखी वाले दिन भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ और बौद्ध धर्म का प्रचार संगतों में शुरू किया था।
बैसाखी का त्यौहार गोइंदवाल में श्री गुरु अमरदास जी भी मनाया करते थे। श्री गुरु रामदास जी बैसाखी वाले दिन संगतों को प्रभु सिमरन करने का उपदेश बख्शा करते थे। बैसाखी वाले दिन संगतें हजारों की संख्या में गोइंदवाल स्थित गुरु घर आती हैं।
गुरबाणी में श्री गुरु नानक स्वरूप, श्री गुरु अर्जुन देव जी बैसाखी का त्यौहार अपने प्रिय सतगुरु के साथ मनाने का उपदेश देते हैं।
बैसाखु सुहावा तां लगै जा संतु भेटे हरि सोई
बैसाखी वाले दिन श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा पंथ सजा कर भारत में फैले जात-पात के कोढ़ को समाप्त किया, सबको बाटे का अमृत छका कर उपदेश दिया कि ‘प्रत्येक ने केवल और केवल अकाल पुरुख की उपासना करनी है, गरीबों पर होते जुल्मों को रोकना है और जीवन में कोई भी ऐसा काम नहीं करना जिससे खालसा पंथ को दाग लगे।’
13 अप्रैल 1919 को बैसाखी वाले दिन अमृतसर जलियांवाला बाग में आयोजित एक जलसे में हजारों की संख्या में भारतीय लोग शामिल हुए थे। पापी जनरल डायर को सायं 4.30 बजे इस एकत्रता की जानकारी मिली, और वह अपने सैनिकों सहित जलियांवाला बाग आ धमका। उसके आदेश पर गोरे सिपाहियों ने बाग के सभी दरवाजों पर डेरा डाल दिया। डायर के कहने पर सेना ने गोलियों की बारिश करके हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया, कइयों ने कुएं में छलांगें लगा दीं। इस खूनी घटना का बदला स्वाभिमानी योद्धा सरदार ऊधम सिंह ने इंगलैंड की धरती पर पहुंच कर 13 मार्च 1940 को जनरल डायर के सीने में दनादन गोलियां मार कर लिया।