Ram mandir: राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीक हैं भगवान श्रीराम

Tuesday, Jan 16, 2024 - 08:27 AM (IST)

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Ram mandir: भगवान श्रीराम हिन्दू स्वाभिमान के सबसे बड़े प्रतीक हैं इसीलिए मैंने इंगलैंड में आयोजित श्रीराम जन्मोत्सव समारोह में कहा था- ‘‘अगर मैं इस देश का अंग्रेज डिक्टेटर होता तो सबसे पहला काम यह करता कि महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखित ‘रामायण’ को जब्त करने का आदेश जारी करता।’’


क्यों? इसलिए कि जब तक यह महान क्रांतिकारी ग्रंथ भारतवासी हिन्दुओं के हाथ में रहेगा, तब तक हिन्दू न किसी दूसरे ईश्वर या  सम्राट के आगे सिर झुका सकते हैं और न उनकी नस्ल का ही अंत हो सकता है।

‘आखिर रामायण के अंदर ऐसा क्या है कि वह भारतवासियों के अंत:करण में आज तक बसी चली जा रही है ? मेरी सम्मति में रामायण लोकतंत्र का आदिशास्त्र है- ऐसा शास्त्र, जो लोकतंत्र की कहानी ही नहीं सुनाता, लोकतंत्र का प्रहरी, प्रेरक और निर्माता भी है। इसलिए तो मैं कहता हूं कि अगर मैं इस देश का डिक्टेटर (तानाशाह) होता तो सबसे पहले रामायण पर प्रतिबंध लगाता, जब तक रामायण यहां है, तब तक इस देश में कोई भी डिक्टेटर पनप नहीं सकता। स्वाधीनता की भावना को कोई भी नहीं कुचल सकता।’


रामायण को शक्ति क्यों न कहें, क्या कहीं नजर आता है ऐसा सम्राट, साम्राज्य या अवतार, जो भगवान श्रीराम की तुलना में ठहर सके ?

 

सबके खंडहर आर्तनाद कर रहे हैं, किन्तु रामायण का राजा, उसकी मर्यादा, उसका धर्म, उसके द्वारा स्थापित रामराज्य भारतवासियों के मानस को आज भी ज्यों-का-त्यों प्रेरित-प्रभावित कर रहा है।

‘चक्रवर्ती राज्य को त्याग कर वल्कल वेश में भी प्रसन्नवदन रहने वाले, राजपुत्र, किन्तु अयोध्या से रामेश्वरम् तक लोकजीवन के बीच एक सामान्य जन की भांति विचरण करने वाले, शबरी की भक्ति के वशीभूत हो उसके झूठे बेर खाने वाले और अहल्या का उद्धार करने वाले श्रीराम ने रावण की लंका जीती, किन्तु फूल की तरह उसे अर्पण कर दिया उस विभीषण को, जिसने डिक्टेटर तथा धर्मद्रोही भाई (रावण) का विरोध कर प्रजातंत्र का ध्वज फहराया था।’

ऐसे थे रामायण के श्रीराम, जिनकी जीवन-गाथा रामायण में अजर-अमर है। इस देश को मिटाने के लिए बड़ी-बड़ी ताकतें आईं- मुगल, शक, हूण आए, किन्तु वे इसे मिटा न सके। कैसे मिटाते ? रामायण जन-जन को प्रेरणा जो दे रही थी, सर्वधर्म तथा स्वदेश की रक्षा की।
-वीर विनायक दामोदर सावरकर

रामायण के आदर्श- श्रीराम, लक्ष्मण जी और हनुमान जी
श्रीराम की अनुपम उदारता- मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जब वन में भक्तिन शबरी के आश्रम में पहुंचे, तब उन्होंने उससे घृणा नहीं की क्योंकि भिलनी ब्राह्य और आभ्यंतर-शुद्धि तथा भक्तिभाव से समन्वित थी। भगवान ने उस बुढ़िया की कुटिया में जाने में जरा भी संकोच नहीं किया।

श्रीलक्ष्मण का आदर्श- जब मेघनाद के विषय में श्री रामचंद्र जी को चिंता हुई कि उसे कौन मारेगा, तब इस कार्य को लक्ष्मण ने किया, जिनकी सीताजी के चरण पर दृष्टि पड़ी थी, पर मुख की ओर जिन्होंने नहीं देखा था।

श्री हनुमान जी जी मूर्ति स्थापना- महावीर जी मन के समान वेग वाले और शक्तिशाली हैं। मेरी हार्दिक इच्छा है कि उनका दर्शन लोगों को गली-गली में हो। मोहल्ले-मोहल्ले में हनुमान जी की मूर्ति स्थापित करके लोगों को दिखलाई जाए। जगह-जगह अखाड़े हों, जहां ये मूर्तियां हों।
-महामना मदनमोहन मालवीय

Niyati Bhandari

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