Ayodhya Ram Mandir Bhoomi Pujan: 'चक्रसुदर्शन मुहूर्त' में शुरू होगा राम मंदिर का निर्माण

Wednesday, Aug 05, 2020 - 10:49 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
आखिरकार वो दिन आ गया है, जिस दिन हर भारतवासी का दशकों पुराना सपना पूरा होगा। जी हां, अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण कार्य शुरू होने वाला है। जिसकी शुरूआत आज यानि 05 अगस्त भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि दिन बुधवार को भूमि पूजन के साथ हो रही है। इतिहास के पन्नों में इस दिन को शामिल किया जाएगा। क्योंकि न केवल अयोध्या वासियों के लिए बल्कि पूरे भारत वासियों के लिए ये बेहद खास है। आपकी जानकारी के लिए बता दें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भूमि पूजन किया जाएगा, जिस दौरान Pm Modi राम मंदिर के निर्माण की नींव रखेेंगे। खबरों के अनुसार इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए दिल्ली से रवाना हो चुके हैं। खास बात ये है कि श्री राम जन्मभूमि में मंदिर निर्माण के लिए होने वाले भूमि पूजन का शुभ मुहूर्त केवल 32 सैंकेड का है। ये मुहूर्त 12 बजकर 44 मिनट 08 सैकेंड से लेकर 12 बजकर 44 मिनट 40 सैकेंड तक के बीच है।

माना जा रहा है श्री राम जन्मभूमि में मंदिर निर्माण के लिए होने वाले भूमि पूजन का मुहूर्त बेहद महत्व है। कहा जा रहा है  'चक्रसुदर्शन मुहूर्त' इस शुभ कार्य के लिए सबसे श्रेष्ठ हैं। तो आइए जानते रामचरित मानस में श्री रीम से जुड़ी खास बातें- 

चक्रसुदर्शन मुहूर्त (अभिजित) श्रेष्ठ-
रामचरित मानस में भी कहा गया है कि-

नवमी तिथि मधुमास पुनीता।  
सुकल पक्ष अभिजीत हरिप्रीता।। 
मध्यदिवस अतिशीत न घामा पावन काल लोक विश्रामा।। 


धर्म शास्त्र के विशेषज्ञ बताते हैं कि इस पंक्ति से स्पष्ट होता है कि श्री राम का जन्म 11 बजकर 36  मिनट से 12 बजकर 24 मिनट के बीचों बीच हुआ था। कहा जाता है आदिकाल में विश्वकर्मा ने इसी मुहूर्त में सूर्य के अतिशय तेज से शिव का त्रिशूल, वज्र, और चक्र सुदर्शन का निर्माण किया था। उस समय के साथ-साथ यह मुहूर्त आज भी सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसके मध्य किया गया कोई भी कार्य कभी असफल नहीं होता। अतः यही कारण है राम मंदिर निर्माण के लिए 05 अगस्त को दोपहर का चक्रसुदर्शन मुहूर्त (अभिजित) ही श्रेष्ठ माना जा रहा है। 

श्लोक- 
योग, लगन, ग्रह, वार, तिथि सकल भये अनुकूल। शुभ अरु अशुभ हर्षजुत राम जनम सुखमूल। 

इस श्लोक का अर्थ है कि यानि सभी ग्रह, योग, लग्न, नक्षत्र आदि अपने-अपने शुभ स्थान पर चले गए थे।

ब्रह्म के साकार रूप की सेवा में तत्पर तिथि, वार ग्रह, नक्षत्र और योग मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का जीवन और इनके द्वारा कही गई बातें मानव समाज के लिए न केवल आदर्श स्थापित करती हैं, बल्कि व्यक्ति को विषम परिस्थितियों में भी विचलित न होने की प्रेरणा देती हैं। अपने जीवन में ग्रह नक्षत्रों की अनुकूलता होते हुए भी इन्होंने सामाजिक सन्देश के लिए अपने जीवन को लौकिक दृष्टि से कष्टकारक बनाया। इससे ये सीख मिलती है कि हम सभी को भी श्रीराम के आदर्शों पर चलने का संकल्प लेना चाहिए।  चाहे श्रीराम का जन्म हुए लाखों वर्ष बीत चुके हों, मगर आज भी अगर कोई सच्चे मन से इनका नाम लेता है तो ऐसा प्रतीत होता है कि प्रभु श्री राम धनुष बाण लिए पास ही खड़े हैं। 

कहा जाता है कि केवल इनके नाम स्मरण मात्र से ही जातक के शरीर में स्पंदन होने लगता है क्योंकि राम परंब्रह्म का साकार रूप हैं, जगत नियंता हैं, सर्व शक्तिमान हैं। माना जाता है कि इन्हीं के विराट स्वरूप में अखिल ब्रह्मांड समाया हुआ है। तो वहीं ब्रह्मलोक इनका शीश, पाताल इनके चरण, सूर्य-चन्द्र इनके नेत्र, मेघ मंडल इनके काले केश तथा भयंकर काल इन्ही की भृकुटी संचालन से गतिमान होता है। 

हिंदू धर्म में प्रमुख कहे जाने वाले वेद इनकी वाणी है, तो शिव इनके अहंकार और ब्रहा इनकी बुद्धि है। तो सारी श्रृष्टि की उत्त्पत्ति, पालन, और प्रलय परंब्रह्म परमेश्वर की चेष्ठा है।

शास्त्रों में कहा गया है परमेश्वर जब अधर्मियों का नाश करने और धर्म की स्थापना के लिए मानव शरीर में भगवान हर युग में पृथ्वी पर आते है। जिनकी सेवा हेतु देवता, नाग, गनर्धव, योगी आदि भी समस्त जन विभिन्न रूपों के जन्म लेते हैं। ज्योतिष शास्त्र की मानें तो इस दौरान ग्रह, नक्षत्र, तिथि, वार, लग्न एवं सभी योग अनुकूल हो जाते हैं। 

अगर बात नारायण की करें तो वे इन योगों से अलग ही लीलाएं करते हैं। कहने का अर्थ है कि ये तमाम ग्रहों और उनके प्रभावों से परे हैं। एक पंक्ति के अनुसार जब आसुरी शक्तियों के बढ़ने और देवताओं की प्रार्थना पर जब परमेश्वर ने राम के रूप मानव शरीर धारण कर पृथ्वी पर जन्म लेने का संकल्प लिया तो कहा जाता है। 

योग, लगन, ग्रह, वार, तिथि सकल भये अनुकूल। 
शुभ अरु अशुभ हर्षजुत राम जनम सुखमूल। 

 

Jyoti

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