कुछ ऐसा था अटल बिहारी वाजपेयी जी के सपनों का भारत

Saturday, Jan 15, 2022 - 12:31 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Atal Bihari Vajpayee thoughts: पृथ्वी को माता के रूप में देखना अथर्ववेद का वचन है। पृथ्वी हमारी माता है, हम उसके पुत्र हैं और वंदेमातरम के रूप में हम उसी मां का वंदन करते हैं। आज वंदेमातरम को बड़े प्रभावशाली ढंग से गाया जाता है। एक अल्प गायन भी होता है, मगर हमें सामूहिक गायन को अपने देश में प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है-मिलकर गाएं।

केवल वंदेमातरम ही नहीं बल्कि अन्य गीत भी गाने चाहिएं। हम मिल कर गीत गाने में कुछ पीछे हैं और देश में भीड़ इकट्ठी होती है तो लोग गाना शुरू कर देते हैं। वे गीत उनके जीवन, उनकी धरती, उनकी प्रकृति और उनकी संस्कृति से जुड़े होते हैं। हमें भी कुछ गीतों को प्रचलित करना चाहिए, लोकप्रिय बनाना चाहिए। एक कंठ से गीत गूंजें, हमारे राष्ट्रीय संकल्प को प्रकट करें।
वंदे मातरम मर्मस्पर्शी गीत है- मातृभूमि की वंदना-किस तरह से वह हरी-भरी रहनी चाहिए, किस तरह से यह दुष्टों का दमन करने में समर्थ है, किस तरह से यह भूमि हमारे लिए धर्म है, विद्या है, सब कुछ है और जब हम भारत माता की चर्चा करते हैं तो उसमें धरती आती है, वह हमें धारण करती है। यह धरित्री-वसुंधरा है।

कभी हम प्रकृति के साथ ज्यादती करते हैं तो प्रकोप भी हमें देखने को मिलता है लेकिन हम इस पर टिके हुए हैं-वह हमारा पालन-पोषण करती है-यह आधार है-यह धरती पवित्र है, यह धरती पावन है।

सवेरे उठ कर हम धरती पर पांव रखते हैं ‘‘पादेन स्पर्शम्’ क्षमा करना मैंने पैर रख दिया, मां! मुझे क्षमा करना।  

धरती के बारे में ऐसी पवित्र भावना और इसलिए धरती का पूरा संरक्षण, उसे समृद्ध बनाना, हरी-भरी बनाना। धरती के बांटने का सवाल ही पैदा नहीं होता है। वह ऐसी एक भूल है पता नहीं कब तक वह हमसे अपनी कीमत चुकाने के लिए कहती रहेगी। धरती मां और उस पर निवास करने वाली उसकी संतति, विशाल परिवार, अलग-अलग भाषाओं में अपने को अभिव्यक्त करता हुआ, अलग-अलग रहन-सहन की पद्धति अपनाता हुआ, अलग-अलग प्रकार के मौसमों में जीवन यापन के तरीके ढूंढता हुआ, हजारों वर्ष से इस देश में, इस मां की संतति के रूप में विद्यमान समाज है, उसका भी हमें स्मरण करना है। उसके विकास का, उसकी रक्षा का।

धरती और धरती पर निवास करने वाला जन्म और जन्म के साथ-साथ रहते-रहते, सहते-सहते, जीवन के मीठे और कड़वे फल साथ-साथ चखते-चखते, प्रकृति से लड़ते-लड़ते, विदेशी आक्रांताओं का सामना करते-करते, सृष्टि के सारे रहस्यों को भेदने की दिशा में निरंतर अन्वेषण करते-करते, भारत माता की संतति ने एक संस्कृति का निर्माण किया है। इस धरती मां की हम वंदना करते हैं, और उस संतति ने जीवन की जो पद्धति विस्तृत की है, हम उनकी रक्षा करने का भी अभिवचन देते हैं।

वंदे मातरम मात्र गीत नहीं है, यह तो एक राष्ट्रीय संकल्प की उद्घोषणा है। यह पीढ़ी दर पीढ़ी चलेगी। यह राजनीतिक परिवर्तन से परे है। इसे सत्ता के संघर्ष के कारण खंडित नहीं होने देना चाहिए। अगर आने वाली पीढ़ी को हम उसकी कल्पना का और हमारे सपनों का भारत नहीं दे सके तो भी हम वंदेमातरम के रूप में एक ऐसा मंत्र, एक ऐसा देश दे जाएंगे, एक ऐसी जीवन पद्धति दे जाएंगे, जिसके बल पर वह सैंकड़ों वर्षों के संकल्प को साकार करेंगे। 
(एक भाषण के अंश)
 —अटल बिहारी वाजपेयी

Jyoti

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