होनी अनहोनी टालने, भाग्य को बदलने की क्षमता रखता है ज्योतिष

Monday, Feb 13, 2017 - 08:45 AM (IST)

यथार्थ के बहुत करीब तक भविष्यवाणियां की जा सकती हैं लेकिन आवश्यकता है ज्योतिष के गूढ़ रहस्यों की जानकारी एवं ग्रहों की चाल समझने की। यदि भविष्य में होने वाली घटनाओं की जानकारी हमें वर्तमान में मिल जाए तो हम भविष्य के लिए बहुत कुछ तैयारियां कर सकते हैं। भविष्य में होने वाली दुर्घटना को टाल सकते हैं अथवा उसके दुष्प्रभाव को कम कर सकते हैं। इस शताब्दी में ज्योतिष विद्या को नया आयाम देने वाले डाक्टर वी.वी. रमन ने बैंगलूर में एक उद्योगपति की जन्मकुंडली देखी और कहा कि यह व्यक्ति अपनी अगली समुद्र यात्रा में डूब कर मर जाएगा। उद्योगपति ने महीने भर बाद ही समुद्री यात्रा की। वह सकुशल गंतव्य स्थान पर पहुंचा। जिस होटल में ठहरा वहां भोजन में उसने मछली पसंद की। खाते समय मछली के शरीर में गलती से छूट गया कांटा उसके गले में फंसा। उसे निकालने के लिए किए गए ऑप्रेशन के दौरान उद्योगपति की मृत्यु हो गई। इस प्रसंग में भविष्यवाणी को न तो गलत हुआ कहेंगे और न ही सही। गलत इसलिए नहीं कि मृत्यु समुद्री यात्रा सम्पन्न होने के बाद हुई और उसके कारणों में जलचर प्राणी भी था। सही इसलिए नहीं कि उसके लिए समुद्र में डूबकर मरना बताया गया था।

 

अधिकांशत: देखा गया है कि ज्योतिषी लोग अपनी विद्या का सही इस्तेमाल नहीं कर पाते या यूं कहें कि पूर्ण उपयोग नहीं कर पाते और सही भविष्यवाणी में कई बार चूक जाते हैं। सही मायने में देखा जाए तो ज्योतिष विद्या मनुष्य के पिछले कर्मों का दंड-पुरस्कार बताने वाला विज्ञान है। प्रो. वी.वी. रमन से किसी ने पूछा कि कर्मों का परिणाम अटल है। भाग्य में जो लिखा है वह होना ही है तो उसे जानने से क्या लाभ? अवश्यम्भावी को जानकर उसके तनाव में अपना वर्तमान क्यों खराब किया जाए?


प्रो. रमन ने उत्तर दिया कि उस जानकारी के आधार पर अपने भविष्य को सुधारा जा सकता है। कम से कम यह तो किया जा सकता है कि हम अपने किए हुए कर्मों का परिणाम भुगतने के लिए मानसिक रूप से तैयार रहें। दुखद संभावनाएं टाली नहीं जा सकतीं तो कम से कम उनसे निपटने की तैयारी तो कर ही सकते हैं।


प्रो. रमन कहते थे कि भविष्य को जान लेने के बाद उसे बदला भी जा सकता है। निचली अदालत में कोई जुर्म सिद्ध होने और सजा सुनाई जाने के बाद ऊंची अदालतों में अपील की जाती है। वहां भी अपराध सिद्ध हो जाए तो दो स्थितियां होती हैं। एक सजा बहाल रहे और दूसरे उसमें कुछ छूट मिल जाए या दंड का स्वरूप बदल जाए। निचली अदालतों में फांसी की सजा सुनाए लोगों को बड़ी अदालतों से अक्सर राहत मिलती है। उनकी फांसी अक्सर आजीवन कारावास में बदल जाती है। भाग्य में उलट-फेर की संभावना इसी तरह मौजूद रहती है। उस संभावना का उपयोग किया जाना चाहिए। चेतना के एक स्तर पर पहुंचने के बाद भावी घटनाओं का न केवल पूर्वाभास होता है बल्कि उन्हें नियंत्रित भी किया जा सकता है। उनकी दिशाधारा बदली जा सकती है। 


प्रो. एस.के. सुब्रह्मण्यम स्वामी ‘एस्ट्रो डेस्टिनी एंड विलनैस’ पुस्तक में लिखते हैं ‘‘ज्योतिषी को दुखद भविष्यवाणियां करने से बचना चाहिए। हो सकता है नियति का विधान किसी और तरह काम करे और होनी जिस रूप में दिखाई दे रही है, वह टल जाए लेकिन एक बार दुखद भविष्यवाणी कर दी गई और जातक ने उसे मान लिया तो दुख की आशंका और भी घनीभूत हो जाती है। वह संभावना टल रही हो तो भी वापस बुला ली जाती है।’’


रोग, नुक्सान, मृत्यु, विग्रह आदि भविष्यवाणियों के सही होने में सिर्फ होनहार ही कारण नहीं है, उनकी घोषणा भी एक अंश में जिम्मेदार है जो दुर्घटनाओं के लिए आवश्यक पृष्ठभूमि रचती है। इस तरह की घोषणाएं कभी-कभार जातक के मन में प्रतिरोध क्षमता उत्पन्न करती हैं। वह उन्हें रोकने के लिए कमर कसता है, उन्हें टालता भी है लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता। भाग्य को जान लेने के बाद उसे बदलने का उपक्रम किया जा सके तो यह ज्योतिष का सही उपयोग है। सवाल हो सकता है कि भाग्य को बदला कैसे जाए? बहुत बार सिद्धपुरुषों का अनुग्रह भी काम आता है।


ऐसे ही सिद्ध पुरुष देवरहा बाबा के संबंध में एक वृत्तान्त प्रसिद्ध है कि वाराणसी की उनकी किसी भक्त महिला ने ज्योतिषी को अपनी कुंडली दिखाई। ज्योतिषी ने कहा वैधव्य योग है। तुम्हारे पति के साथ दुर्घटना हो सकती है और उनके प्राण संकट में फंस जाएंगे। वह महिला घबराई, क्योंकि अनुभव था कि इस ज्योतिषी की बातें प्राय: सही निकलती थीं। अपनी जन्मपत्री लेकर वह महिला देवरहा बाबा के पास गई। उनके सामने अपनी समस्या रखी, बाबा ने जन्मपत्री मांगी। कुछ देर अपने हाथ में रखी, मंच पर बैठे-बैठे ही उन्होंने जन्मपत्री पर उंगली से कुछ लिखने का उपक्रम किया और महिला से एक मंत्र बुलवाया। पत्री वापस करते हुए उन्होंने कहा, तुम्हारे सौभाग्य में वासुदेव की प्रतिष्ठा हो गई। जा, कुछ नहीं बिगड़ेगा कुछ सालों पहले उस महिला का निधन हुआ। मरते समय उसने अपने पति को सामने खड़ा रखा और उसे अपलक निहारते हुए प्राण छोड़े। आत्मबल सम्पन्न दिव्यद्रष्टा सद्गुरु में वह शक्ति है जोकि भविष्य में होने वाली अनहोनी को भी टाल सकती है अथवा उसे हल्का कर सकती है।


होनी को टालने अथवा नियति को बदलने वाले उपायों में तीन प्रमुख हैं-एक इच्छा शक्ति, दूसरा विनय और तीसरा नियति को समझने और तद्नुकूल अपने आपको ढाल लेने वाला ज्ञान। तीसरे उपाय को एक ही शब्द में ‘गुह्य ज्ञान’ भी कहा जा सकता है। अपने आपको बदलने और विश्व को अधिक सुंदर, उन्नत, व्यवस्थित बनाने के लिए समर्पण का मन बना लिया जाए तो नियति में बदलाव आने लगता है। तब प्रकृति एक अवसर देती है। जिन लोगों की नियति में बदलाव आया, उनके लिए नियति ने उद्देश्यपूर्ण उदारता ही बरती।


योगी सदानंद ने इस उदारता की व्याख्या करते हुए लिखा है, ‘‘यदि हम अपने आपको दिव्य प्रयोजनों के लिए समर्पित कर सकें तो भागवत चेतना हमारी नियति अपने हाथ में ले लेती है। इससे कर्म-बंधन छूट जाते हैं पिछले जन्मों में किए गए कर्म केंचुली की तरह उतर जाते हैं और व्यक्ति अधिक तेजस्वी होकर चमकने लगता है।’’


इस बात का हमें सदैव ध्यान रखना चाहिए कि इच्छाशक्ति का उपयोग कुटिल भावना से नहीं किया जा सकता। बदलने या सुधरने का ढोंग कर अपने लिए क्षमा नहीं बटोरी जा सकती है। बाहरी दुनिया में काम करने वाली न्याय व्यवस्था को झांसा देना कितना ही आसान हो, दिव्य प्रकृति में कोई झांसेबाजी नहीं चलती। वहां शुद्ध ईमानदारी और प्राथमिकता ही काम आती है।

 
दूसरा आवश्यक गुण है ‘विनय’। अपने आपको भागवत चेतना के हवाले छोड़ देने और अकिंचन हो जाने की मन: स्थिति ही विनय है। उस स्थिति में अहंकार का नाम-निशान नहीं बचता। एक बार तो यह परवाह भी छोड़ देनी पड़ती है कि नियति से उदार परिवर्तन भी आएंगे। अपने आपको कठोर तथा और अधिक क्रूर परिवर्तनों के लिए भी उसी कृतज्ञ भाव से तैयार रखना पड़ता है।


यह बात स्पष्ट है कि जन्म पत्रिका के माध्यम से हम आने वाले समय में अर्थात भविष्य में होने वाली घटनाओं के संबंध में महत्वपूर्ण बातों को जान सकते हैं। यदि हमारे साथ कोई दुर्घटना घटने वाली है तो हम उसके बचाव के उपाय कर सकते हैं और नहीं तो कम से कम उस दुर्घटना के प्रभाव को तो कम कर ही सकते हैं। आवश्यकता है तो दृढ़ इच्छाशक्ति की और गुरुदेव के सान्निध्य की।

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