रावण की कुंडली का पोस्टमॉर्टेम

Wednesday, Jul 08, 2015 - 01:52 PM (IST)

कहते हैं की हर व्यक्ति के अंदर कहीं न कहीं रावण बसा हुआ है और हर व्यक्ति के अंदर बैठा हुआ रावण कभी मर नहीं सकता। जब तक दुनिया में मोह और मद विद्दमान है रावण सदैव जीवित है। यही कारण है की लंकापति रावण के देहांत के हजारों साल बाद भी हम हर साल विजयदशमी पर रावण का अंतिम संस्कार करते हैं। वास्तविकता में रावण महाज्ञानी था उसने अपने कुटुंब के मोक्ष हेतु ही देवी सीता का हरण किया था। रावण महापंडित भी था तभी श्रीराम ने लक्ष्मण को राजनीतिक ज्ञान लेने रावण के पास भेजा था।

वाल्मीकि जी ने रामायण में रावण को महात्मा कहा है। रावण अतुलित ज्ञानी व बहु-विद्याओं का मर्मज्ञ था। एक कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति और वास्तुकला और ज्योतिष का महापण्डित व महान राष्ट्रनायक था। रावण वैदिक ऋचाओं का जन्मदाता था, उसने इंद्रजाल, शिव-तांडव स्तोत्र, उड्डीश तंत्र, कामचाण्डाली आदि ग्रन्थों की रचना की थी। इस विशेष लेख के माध्यम से हम अपने पाठकों को लंकापति रावण की कुंडली का विश्लेषण बताने जा रहे हैं।  

रावण की कुंडली में लग्नेश सूर्य के पंचमेश बृहस्पति के साथ युति कर लग्न में स्थित था। इसी कारण लग्न अत्यधिक बलशाली था। इसी कारण रावण सुखी और समृद्ध था। उसका आत्मबल भी उच्च कोटि का था क्योकि सिंह स्थिर लग्न है अतः भगयेश व चतुर्थेश मंगल इस कुंडली का बाधक भी है। रावण की कुंडली में लग्नस्थ सूर्य पर बाधक क्रूर ग्रह मंगल की दृष्टि होने के कारण वह अहंकारी था। रावण की कुंडली के दूसरे भाव में लाभेश व धनेश बुध की स्वयं राशि कन्या में बैठकर धनयोग का निर्माण कर रहा था। इसी कारण वो अपार धन का स्वामी था। कार्मेश व प्रक्रमेश शुक्र दशम भाव में स्वयं राशि वृष में बैठा हुआ था। दशम स्थान के बलवान शुक्र ने रावण को अत्यधिक कर्मठ बलशाली व विलासप्रिय बनाया। तीसरे भाव में उच्च शनि रोगेश व मार्केश होकर केतु के साथ युति करा रहा था जिस पर विच्छेदात्मक ग्रह राहु की दृष्टि भ्रातृ भाव पर पड़ने से रावण को अपने ही भाई विभीषण के विरोध का सामना करना पड़ा और वह उसका शत्रु बन गया।

रावण की कुंडली में पंचमेश गुरु के पंचम से नवम् भाव में अर्थात लग्न स्थान में स्थित होने व अपने ही विद्या व संतान भाव को पूर्ण दृष्टि से देखने के कारण वह अनेक पुत्रों वाला, विद्यावान, बुद्धिमान और शास्त्रज्ञ था। लग्न में सूर्य-बृहस्पति की युति ने लंकापति को ज्योतिष का प्रकांड पण्डित बनाया। अष्टमेश बृहस्पति की आठवें स्थान से छठे स्थान में स्थिति तथा पांचवें भाव पर शनि की दृष्टि ने अंतकाल में रावण की विद्या व बुद्धि का सर्वविनाश कर दिया। इसी कारण अंत समय में उसकी बुद्धि विपरीत हो गई थी। नवम् स्थान पर राहु की मेष राशि में उपस्थिति के कारण रावण भाग्यवान था। राहु पर उच्च के शनि की पूर्ण दृष्टि के कारण वह सफल राजनीतिज्ञ व कूटनीतिज्ञ बना। धर्म भाव में राहु के स्थित होने से रावण भगवान् राम का विरोधी बना। रावण की राशि कर्क थी स्वयं राशि में बैठे चंद्रमा पर मंगल की सप्तम दृष्टि तथा शनि की दसवीं दृष्टि के कारण ही रावण रजोगुण ब्राह्मण बना। 

चंद्रमा स्त्री ग्रह है और भगवान शंकर का प्रतीक है तथा रावण की कुंडली में व्ययेश भी है। अतः एक स्त्री अर्थात माता सीता उसके साम्राज्य के पतन और उसकी मृत्यु का कारण बनीं। शत्रु भाव में मंगल की उच्च राशि मकर होने के कारण मंगल के स्वरूप स्वयं हनुमानजी रावण के पतन का कारण बने। राम ने रावण की नाभि में स्थित अमृत में अग्निबाण मारा था। चंद्र अमृत और मंगल अग्नि बाण का प्रतीक है। धनेश के प्रबल त्रिषडायेश होकर कुटुंब भावस्थ होने के कारण धन, कुटुंब, पुत्रादि का शमन हुआ बृहस्पति अष्टम स्वामी होने के कारण बृहस्पति के प्रतीक भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान श्रीराम के हाथों रावण की मृत्यु हुई। दार्शनिक दृष्टि से देखा जाए तो भगवान शंकर से रावण ने वरदान प्राप्त अपने मोक्ष के द्वार खोल दिए थे। तभी तो स्वयं भगवती लक्ष्मी को सीता के रूप में, भगवान विष्णु को राम के रूप में तथा स्वयं भगवान शंकर को हनुमान का रूप लेकर आना पड़ा रावण के मोक्ष के लिए। रावण की मृत्यु वास्तविकता में ब्रह्म सामीप्य मुक्ति है।

आचार्य कमल नंदलाल

ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com 

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