लंका जलकर भस्म हो गई केवल एक घर नहीं जला

Monday, Jun 15, 2015 - 03:34 PM (IST)

मेघनाद ने श्री हनुमान जी को रावण के सामने लाकर खड़ा कर दिया। हनुमान जी ने देखा कि राक्षसों का राजा रावण सोने के बहुत ही ऊंचे सिंहासन पर बैठा हुआ है। उसके दस मुंह और बीस भुजाएं हैं और उसका रंग एकदम काला है। उसके आसपास बहुत से बलवान योद्धा और मंत्री आदि बैठे हुए हैं लेकिन रावण के इस प्रताप और वैभव का हनुमान जी पर कोई असर नहीं पड़ा। वह वैसे ही निडर खड़े रहे-जैसे सांपों के बीच में गरुड़ खड़े रहते हैं।

हनुमान जी को इस प्रकार अपने सामने अत्यंत निर्भय और निडर खड़े देखकर रावण ने पूछा, ‘‘बंदर! तू कौन है? किसके बल के सहारे वाटिका के पेड़ों को तुमने नष्ट किया है? राक्षसों को क्यों मारा है? क्या तुझे अपने प्राणों का डर नहीं है? मैं तुम्हें बहुत निडर और उद्दंड देख रहा हूं।

हनुमान जी ने उत्तर दिया, ‘‘जो इस सम्पूर्ण विश्व के इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी हैं मैं उन्हीं भगवान श्री रामचंद्र जी का दूत हूं। तुम चोरी से उनकी पत्नी का हरण कर लाए हो? उन्हें वापस कर दो, इसी में तुम्हारा और तुम्हारे परिवार का कल्याण है। यदि तुम यह जानना चाहते हो कि मैंने अशोक वाटिका के फल क्यों खाए, पेड़ आदि क्यों तोड़े और राक्षसों को क्यों मारा तो मेरी बात सुनो। मुझे बहुत जोर की भूख लगी थी, अत: वाटिका के फल खा लिए। वानर स्वभाव के कारण कुछ पेड़ टूट गए। अपनी देह सब को बहुत प्यारी होती है  तो जिन लोगों ने मुझे मारा उन्हें मैंने भी मारा। इसमें मेरा क्या दोष है? लेकिन इसके बाद भी तुम्हारे पुत्र ने मुझे बांध रखा है।

यह सुनकर रावण को बहुत क्रोध चढ़ आया। उसने राक्षसों को हनुमान जी को मार डालने का आदेश दिया। राक्षस उन्हें मारने दौड़े लेकिन तब तक विभीषण  ने वहां पहुंचकर रावण को समझाया कि यह तो एक दूत मात्र है। इसका काम अपने स्वामी का संदेश पहुंचाना है। इसका वध करना उचित नहीं होगा। इसे कोई अन्य दंड देना ही ठीक होगा।

विभीषण की यह सलाह रावण को पसंद आ गई। उसने कहा, ‘‘ठीक है। बंदरों को अपनी पूंछ से बड़ा प्यार होता है। इसकी पूंछ में कपड़े लपेट कर, तेल डालकर आग लगा दो। जब यह बिना पूंछ का होकर अपने स्वामी के पास जाएगा तब फिर उसे भी साथ लेकर लौटेगा।’’ यह कह कर वह बड़े जोर से ठठा कर हंसा।

रावण का आदेश पाकर राक्षस हनुमान जी की पूंछ में तेल में भिगो-भिगोकर कपड़े लपेटने लगे। अब तो हनुमान जी ने बड़ा ही मजेदार खेल किया। वह धीरे-धीरे अपनी पूंछ बढ़ाने लगे। अंत में ऐसा हुआ कि पूरी लंका में कपड़े, तेल, घी आदि कहीं बचे ही नहीं। तब राक्षसों ने तुरंत उनकी पूंछ में आग लगा दी। पूंछ में आग लगते ही हनुमान जी फुर्ती से उछल कर एक ऊंची अटारी पर जा पहुंचे। वहां से चारों ओर कूद-कूद कर लंका को जलाने लगे। देखते ही देखते पूरी नगरी आग की विकराल लपटों के बीच घिर गई। सभी राक्षस, राक्षसियां जोर-जोर से रोने और चिल्लाने लगे। वे सब रावण की निंदा कर रहे थे।

रावण को आग बुझाने का कोई उपाय न सुझाई दे रहा था। हनुमान जी की सहायता करने के लिए पवन देवता भी जोर-जोर से बहने लगे। थोड़ी ही देर में पूरी लंका जलकर नष्ट हो गई। हनुमान जी ने केवल विभीषण का घर छोड़ दिया उसे नहीं जलाया।

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