मात्र एक सोच बदल सकती है मांस, मदिरा और जर्दा खाने की आदत

Wednesday, Jun 10, 2015 - 08:23 AM (IST)

भूख लगे तो खाना प्रकृति है। भूख न लगे तब भी खाना विकृति है और स्वयं भूखे रहकर किसी भूखे को खिला देना संस्कृति है। भोजन यह सोचकर मत करो कि मैं खा रहा हूं बल्कि यह सोचकर करो कि मेरे भीतर जो मेरा प्रभु विराजमान है उसे मैं अर्ध्य चढ़ा रहा हूं।

तुम जब यह सोचकर भोजन करोगे तो फिर कभी मांस, मदिरा और जर्दा आदि नहीं खा सकोगे। क्या तुम कभी परमात्मा को इनका भोग लगाते हो?

नहीं! तो फिर इन्हें अपने पेट में डालकर अपने भीतर बैठे प्रभु को अपमानित क्यों करते हो?

  -जैन मुनि श्री तरुण सागर

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