मेघनाद की भूल से हनुमान जी स्वयं ही ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से छुटकारा पा गए

Tuesday, Jun 09, 2015 - 08:00 AM (IST)

माता सीता जी का अमोघ आशीर्वाद पाकर हनुमान जी को बड़ी प्रसन्नता हुई। उनसे बातचीत करते हुए उनकी दृष्टि अशोक वाटिका में लगे हुए तमाम सुंदर फलवाले वृक्षों पर गई। उन फलों को देखते ही उनकी भूख जाग उठी। उन्होंने सोचा कि इन फलों का सेवन करके मुझे अपनी भूख मिटा लेनी चाहिए। यह सोचकर उन्होंने माता सीता जी से उन फलों को खाकर अपनी भूख मिटाने के लिए आज्ञा मांगी।

सीता जी ने उनकी बात सुनकर कहा, ‘‘तात हनुमान! इस वाटिका की रक्षा में बड़े-बड़े बलवान राक्षस लगे हुए हैं। फल खाने के प्रयत्न में उनके द्वारा तुम्हारी हानि हो सकती है।’’

हनुमान जी ने कहा, ‘‘माता! मुझे उनका कोई भय नहीं है। आप मुझे आज्ञा दीजिए।’’
 
सीता जी ने उनकी बात सुनकर कहा, ‘‘ठीक है, तुम भगवान श्रीराम चंद्र जी का स्मरण करके इन मीठे फलों को खाओ।’’

सीता जी की आज्ञा पाकर महावीर हनुमान जी निर्भय होकर अशोक वाटिका में पहुंच गए और खूब जी भरकर फल खाए। पेड़ों को भी उखाड़-उखाड़ कर तोड़-तोड़ कर फैंकने लगे। बहुत से बलवान राक्षस वहां रखवाली कर रहे थे। उनमें से कुछ हनुमान जी के द्वारा मारे गए और कुछ ने भाग कर रावण को बताया कि अशोक वाटिका में एक बहुत बड़ा बंदर आया है उसने फल भी खाए हैं और पेड़ों को उखाड़-उखाड़ कर फैंक रहा है।

ऐसा सुनते ही रावण ने वहां बड़े-बड़े बलवान योद्धाओं को भेजा लेकिन हनुमान जी ने  खेल-खेल में ही उन्हें थप्पड़ों और घूंसों से मार गिराया। कुछ जो जीवित बचे उन्होंने फिर जाकर रावण के दरबार में गुहार लगाई। अब रावण ने अपने महापराक्रमी पुत्र अक्षय कुमार को वहां भेजा किन्तु वह भी हनुमान जी के हाथों मारा गया। उसके वध का समाचार सुनकर रावण बहुत ही दुखी और क्रोधित हुआ।

अब उसने देवराज इंद्र को भी युद्ध में जीत लेने वाले अपने सबसे बड़े पुत्र मेघनाद को वहां भेजा और रावण ने उससे कहा, ‘‘बेटे! उस बंदर को जान से मत मारना। बांधकर ले आना। मैं भी उसे देखना चाहता हूं कि वह अद्भुत बलशाली बंदर कौन है और कहां से आया है?’’

अब मेघनाद बहुत-से बलवान योद्धाओं के साथ अशोक वाटिका की ओर चल पड़ा। हनुमान जी ने देखा कि यह अत्यंत भयानक और विकराल योद्धा सामने से आ रहा है। बस पहले तो उन्होंने मेघनाद के साथ आने वाले योद्धाओं को अपने शरीर से रगड़-रगड़ कर मार डाला, फिर एक पेड़ उखाड़कर उसके प्रहार से मेघनाद के रथ को घोड़ों सहित चकनाचूर कर दिया।

इसके बाद हनुमान जी ने एक जोर का मुक्का मेघनाद की छाती में मारा और फिर फुर्ती से पेड़ के ऊपर जा बैठे। मेघनाद थोड़ी देर के लिए मूर्छित (बेहोश) होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। मूर्छा (बेहोशी) दूर होने के बाद उसने बहुत माया रची लेकिन उनका हनुमान जी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अब उसने ब्रह्मा जी का दिया हुआ अचूक अस्त्र ‘ब्रह्मास्त्र’ हनुुमान जी पर चलाया।

हनुमान जी ने सोचा, यदि मैं इस ब्रह्मास्त्र का अपने ऊपर कोई प्रभाव नहीं पडऩे देता तो इसका अपमान होगा और संसार में इसकी महिमा घट जाएगी। अत: ब्रह्मास्त्र की चोट लगते ही वह जान-बूझकर बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। अब मेघनाद ने उन्हें नागपाश में बांध लिया और यही उससे भूल हुई। ब्रह्मास्त्र एक ऐसा अस्त्र है कि यदि उसके ऊपर किसी दूसरे अस्त्र-शस्त्र  का प्रयोग कर दिया जाए तो उसका प्रभाव अपने आप समाप्त हो जाता है। इस प्रकार मेघनाद की भूल से हनुमान जी स्वयं ही ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से छुटकारा पा गए। उन्हें उसका प्रभाव नष्ट करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी।

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