कृष्णावतार

punjabkesari.in Monday, Jun 08, 2015 - 03:45 PM (IST)

भगवान वेद व्यास के विदा होने के पश्चात राजा धृतराष्ट्र ने अपने मंत्री संजय से कहा, ‘‘संजय, मैंने अर्जुन का सारा समाचार पूर्ण रूप से सुन लिया है। क्या तुम्हें भी इस बात का कुछ पता है? मेरे पुत्र दुर्योधन  की बुद्धि मंद है और इसी कारण वह विषय-भोग और अन्य बुरे कार्यों में लिप्त रहता है। वह अपनी दुष्टïता के कारण अपना और इस वंश का नाश कर डालेगा। युधिष्ठिर बड़े धर्मात्मा हैं। वह साधारण बात में भी सत्य बोलते हैं। उन्हें भीम और अर्जुन जैसे वीर योद्धा भाई मिले हैं। वे यदि आज चाहें तो त्रिलोकी का राज प्राप्त कर सकते हैं जिस समय भीम अपनी गदा लेकर समरांगण में गरजेगा और अर्जुन अपने गांडीव से बाणों की धुआंधार वर्षा करेगा तब इन दोनों का सामना करने का साहस भला कौन कर सकेगा?’’

‘‘आप बिल्कुल सत्य कह रहे हैं महाराज। महात्मा विदुर जी का तथा मेरा भी यही विचार है कि बहुत भयंकर अनर्थ होने वाला है। भीम और अर्जुन का सामना कर पाना अब स्वयं महाकाल के वश की बात भी नहीं है और फिर जहां श्रीकृष्ण हैं वहां विजयश्री तो उनके भक्तों के चरण चूमती है।’’ संजय ने उत्तर दिया।
 
‘‘हां यही तो मैं भी कहता हूं। मेरा बेटा दुर्योधन कर्ण और अश्वत्थामा के दम पर अकड़ा हुआ है। है तो वह भी भीम की ही टक्कर का। दोनों एक ही गुरु के शिष्य हैं। भीम ने भी गदा युद्ध बलराम जी से सीखा है और दुर्योधन ने भी, कर्ण भी अर्जुन जैसा ही प्रवीण धनुर्धर है। इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है परंतु कृष्ण वासुदेव की जो बात तुमने कही है उसी से मेरा मन भी दुर्बल होता जा रहा है। वह तो विजयी को हरा देते हैं और हारे हुए को जिता देते हैं।’’ धृतराष्ट्र ने उदास भाव से कहा।    

(क्रमश:)




 


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