वृन्दावन का रहस्यमयी निधिवन आस्था है या भ्रम

punjabkesari.in Monday, Jun 01, 2015 - 11:05 AM (IST)

निधिवन का वास्तु ही कुछ ऐसा है, जिसके कारण यह स्थान रहस्यमयी-सा लगता है और इस स्थिति का लाभ उठाते हुए अपने स्वार्थ के खातिर इस भ्रम तथा छल को फैलाने में वहां के पंडे-पुजारी और गाईड इत्यादि भी लगे हुए हैं, जबकि सच इस प्रकार है -

अनियमित आकार के निधिवन के चारों ओर पक्की चारदीवारी है। परिसर का मुख्यद्वार पश्चिम दिशा में है। परिसर का नैऋत्य कोण बढ़ा हुआ है और पूर्व दिशा तथा पूर्व ईशान कोण दबा हुआ है। गाईड जो 16000 वृक्ष होने की बात करते हैं वह भी पूरी तरह झूठी है, क्योंकि परिसर का आकार इतना छोटा है कि 1600 वृक्ष भी मुश्किल से होंगे और छतरी की तरह फैलाव लिए हुए कम ऊंचाई के वृक्षों की शाखाएं इतनी मोटी एवं मजबूत भी नहीं है कि दिन में दिखाई देने वाले बन्दर रात्रि में इन पर विश्राम कर सके और इसी कारण वह रात्रि को यहां से चले जाते हैं।

निधिवन परिसर के अन्दर बने संगीत सम्राट् एवं धु्रपद के जनक श्री स्वामी हरिदास जी की जीवित समाधि, रंग महल, बांके बिहारी जी का प्राकट्य स्थल, राधारानी बंशी चोर इत्यादि को देखने के लिए जो ईंटों से बनी पगदण्डी इन पेड़ों के कारण सीधी न होकर बहुत घुमावदार  बनी है जो निधिवन के वातावरण को और रहस्यमयी बनाती है।

इस परिसर की चारदीवारी लगभग 10 फीट ऊंची है और बाहर के चारों ओर रिहायशी इलाका है जहां चारों ओर दो-दो, तीन-तीन मंजिला ऊंचे मकान बने हुए हैं और इन घरों से निधिवन की चारदीवार के अन्दर के भाग को साफ-साफ देखा जा सकता है। वह स्थान जहां रात्रि के समय रासलीला होना बताया जाता है वह निधिवन के मध्य भाग से थोड़ा दक्षिण दिशा की ओर खुले में स्थित है। यदि सच में रासलीला देखने वाला अंधा, गूंगा, बहरा हो जाए या मर जाए तो ऐसी स्थिति में निश्चित ही आस-पास के रहवासी यह इलाका छोड़कर चले गए होते।

निधिवन के अन्दर जो 15-20 समाधियां बनी हैं, वह स्वामी हरिदास जी और अन्य आचार्यों की हैं, जिन पर उन आचार्यों के नाम और मृत्यु तिथि के शिलालेख लगे हैं। इसका उल्लेख निधिवन में लगे उत्तरप्रदेश पर्यटन विभाग के शिलालेख पर भी किया गया है। इन्हीं समाधियों की आड़ में ही गाईड यह भ्रम फैलाते हैं कि जो रासलीला देख लेता है वह सांसारिक बन्धन से मुक्त हो जाता है और यह सभी उन्हीं की समाधियां हैं।
रंगमहल के अन्दर जो दातून गीली और सामान बिखरा हुआ मिलता है। यह भ्रम इस कारण फैला हुआ है कि रंग महल के नैऋत्य कोण में रंग महल के अनुपात में बड़े आकार का ललित कुण्ड है जिसे विशाखा कुण्ड भी कहते हैं। जिस स्थान पर नैऋत्य कोण में यह स्थिति होती है वहां इस प्रकार का भ्रम और छल आसानी से निर्मित हो जाता है। यहां जो वृक्ष आपस में गुंथे हुए हैं जिन्हें श्रीकृष्ण की 16000 रानियां कहा जाता है। इस प्रकार के वृक्ष निधिवन के अलावा वृन्दावन में सेवाकुंज एवं यमुना के तटीय स्थान पर भी देखने को मिलते हैं।

अब प्रश्न उठता है, कि इस स्थान को जो प्रसिद्धि मिली है उसका क्या कारण है?

वास्तुशास्त्र के अनुसार किसी भी स्थान की प्रसिद्धि के लिए उसकी उत्तर दिशा में नीचाई होना आवश्यक होता है और यदि इस नीचाई के साथ वहां पानी भी आ जाता है तो पानी प्रसिद्धि को बढ़ाने में बूस्टर की तरह कार्य करता है। विश्व में जो भी स्थान प्रसिद्धि प्राप्त किया हुआ है उसकी उत्तर दिशा में नीचाई के साथ-साथ भारी मात्रा में पानी का जमाव या बहाव अवश्य होता है।

यदि उत्तर दिशा के साथ पूर्व दिशा और ईशान कोण में नीचाई एवं पानी आ जाए तो यह सभी मिलकर उस स्थान को और अधिक प्रसिद्धि दिलाने के साथ-साथ आस्था बढ़ाने में भी सहायक होता है। यहां यमुना नदी वृन्दावन की उत्तर दिशा से पूर्व दिशा की ओर घुमकर दक्षिण दिशा की ओर निकल गई है। वृन्दावन की उत्तर दिशा में यमुना नदी के होने से वृन्दावन प्रसिद्ध है और निधिवन वृन्दावन नगर के उत्तरी भाग में ही यमुना नदी लगभग 300  मीटर दूरी पर स्थित है जहां कोसी घाट है। उत्तर दिशा की वास्तुनुकूलता के कारण निधिवन प्रसिद्ध है। इसी के साथ निधिवन परिसर को उत्तर ईशान, पूर्व ईशान और दक्षिण आग्नेय का मार्ग प्रहार हो रहा है। यह सभी शुभ मार्ग प्रहार है जो निधिवन परिसर की प्रसिद्धि बढ़ाने में सहायक हैं।  निधिवन की इतनी प्रसिद्धि के कारण यहां दर्शनार्थी तो बहुत आते हैं, परन्तु दर्शनार्थियों की तुलना में यहां चढ़ावा बहुत कम चढ़ता है, क्योंकि निधिवन परिसर का पूर्व ईशान कोण पूर्व दिशा के साथ मिलकर दबा हुआ है।

निधिवन परिसर की उत्तर दिशा की वास्तुनुकूलता और नैऋत्य कोण और पूर्व ईशान कोण के वास्तुदोष एवं रंगमहल के नैऋत्य कोण में स्थित विशाखा कुण्ड के कारण ही निधिवन की प्रसिद्धि के साथ-साथ रास के रहस्य का भ्रम भी फैला हुआ है।

- वास्तु गुरू कुलदीप सलूजा

thenebula2001@yahoo.co.in


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