कृष्णावतार

Sunday, May 31, 2015 - 01:08 PM (IST)

अपनी भीलनी देवी (पार्वती जी) तथा साथियों को लेकर भील देवता (शंकर जी) एक पेड़ के नीचे एक ओर बैठ गए । अर्जुन ने दृष्टि उठाकर इधर-उधर देखा तो आश्चर्यचकित रह गए कि जो फूल उन्होंने शिव जी की प्रतिमा पर चढ़ाए थे वे सब भील महाराज के शीश पर रखे हुए थे । यह देख कर अर्जुन को अत्यंत प्रसन्नता हुई ।

उन्होंने भील देवता के चरणों में प्रणाम किया और उसी समय अर्जुन को एक गंभीर आकाशवाणी सुनाई दी, ‘‘अर्जुन, तुम्हारे अनुपम पराक्रम से मैं प्रसन्न हूं । तुम्हारे समान शूरवीर और धीर क्षत्रिय कोई अन्य नहीं है । तुम्हारा तेज और बल मेरे समान है । तुम मेरे रूप का दर्शन करो ।

तुम सनातन ऋषि हो । तुम्हें मैं दिव्य ज्ञान देता हूं । इसके प्रभाव से तुम अपने शत्रुओं को ही नहीं,  बल्कि देवताओं को भी जीत सकोगे । मैं प्रसन्न होकर तुम्हें एक ऐसा अस्त्र बताता हूं जिसका कोई निवारण नहीं कर सकता और तुम पलभर में ही मेरा अस्त्र धारण कर सकोगे ।’’ इसके बाद अर्जुन को भगवती जगदम्बा पार्वती और देवाधिदेव भगवान महादेव जी के दर्शन हुए ।

अर्जुन ने दोनों के चरणों पर सिर रख कर गौरी शंकर को प्रणाम किया और उसके बाद अर्जुन उन्हें प्रसन्न करने के लिए स्तुति करने लगे, ‘‘प्रभु आप देवताओं के भी आराध्य देव महादेव हैं । आपके कंठ में जगत के उपकार का चिन्ह नीलिमा है आपके सिर पर जटा है ।’’ (क्रमश:)

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