इस उपाय को करने से आपकी संतान बनेगी आपके बुढ़ापे का सहारा

Wednesday, May 27, 2015 - 08:32 AM (IST)

एक मां अपने बच्चे को ढूंढ रही थी। बहुत देर तक जब वह नहीं मिला तो वह रोने लगी व बच्चे का नाम लेकर ज़ोर-ज़ोर से पुकारने लगी।  कुछ ही समय उपरांत उसका बच्चा उसके पास भाग आया। मां ने पहले तो बच्चे को पुचकारा व गले से लगा लिया, कुछ देर बाद वह उसे डांटने लगी। जब पूछा की कहां छुपा हुआ था तो बालक बोला - ''मां ! मैं छुपा हुआ नहीं था। मैं तो घर के बाहर की दुकान से गोंद लेने गया था।''

मां ने जब पूछा की गोंद से क्या करना है तो बालक भोलेपन से बोला - '' मां ! मैं उससे चाय का कप जोड़ूंगा ।फिर जब तुम बूढ़ी हो जाओगी तो उसी कप में तुम्हें चाय पिलाया करूंगा।''

मां का शरीर यह सुनते ही पसीने से तर ब तर हो गया। कुछ पल तो उसे समझ ही नहीं आया कि वह क्या करे? होश संभालते ही उसने बच्चे को गोद में बिठाया व प्यार से कहा -''बेटा, ऐसी बातें नहीं करते। बड़ों का सम्मान करते हैं। उनसे ऐसा व्यवहार नहीं करते। पापा कितनी मेहनत करते हैं ताकि तुम अच्छे स्कूल जा सको। मम्मी सुस्वादु भोजन बनाती है, तुम्हारे लिए। इतनी मेहनत करते हैं, हम तुम्हारे लिए, ताकि तुम हमारे बुढ़ापे का सहारा बनो………।''

बच्चे ने मां की बात बीच में ही काटते हुए कहा -''मां ! क्या दादा-दादी ने यही नहीं सोचा होगा जब वे पापा को पढ़ाते होंगें। आज जब दादी से गलती से चाय का कप टूट गया था तो तुम कितना ज़ोर से चिल्लाईं थीं। इतना गुस्सा किया था आपने की दादाजी को आपसे दादी के लिए माफी मांगनी पड़ी थी। पता है मां, आप तो कमरे में जाकर सो गईं, दादी बहुत देर तक रोती रहीं। मैंने वो कप संभाल कर रख लिया है, और अब उसे जोड़ूंगा।''

मां को कुछ सूझ ही नहीं रहा था, ''कि वह क्या करे?''

बच्चे को पुचकारते हुए बोली -''मैं भी तब से अशान्त ही हूं।''

यह स्थिति आजकल अक्सर घर-घर में पाई जाती है। हमारे संत त्रिकालदर्शी हैं, तभी तो उस मां अथवा उस जैसे सभी जनों के लिए उन्होंने लिखा -

ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोए,
औरों को शीतल करे, आपहुं शीतल होए॥


कैसी अद्भुत परिस्थिति होती जा रही है हमारे समाज की। हम बड़े-छोटे का लिहाज ही भूल गए हैं। रूपया-पैसा आवश्यक है, किन्तु इसका यह अर्थ नहीं की आप धन के लिए बड़ों का सम्मान करना ही छोड़ दें। शास्त्र तो यहां तक कहते हैं कि धारदार अस्त्र का घाव भर जाता है, किन्तु वाणी द्वारा दिया हुआ घाव नहीं भरता।

हमें यह कदापि विस्मरण नहीं करना चाहिए कि इन्हीं माता-पिता के कारण हम आज समाज में सम्मान से रह रहे हैं। यही वे पिता हैं जो हमारे द्वारा किए गए नुक्सान को हंस कर टाल देते थे। यही वह माता हैं, जो हमारे आंसू रोकने के लिए औरों से भिड़ जाती थी। आज वे जब वृद्ध हो गए हैं तो हमार धर्म बनता है कि हम उनकी सेवा करें।

बड़ों के आशीर्वाद से हमारे बल, आयु, यश व ज्ञान में वृद्धि होती है। अगर हमारे बड़े हमसे अप्रसन्न हो गए तो न जानें हम जीवन की कौन-कौन सी खुशी से वंचित रह जाएंगे। एक साधारण सिद्धान्त है कि बच्चे हम से ही सीखते हैं। हम जो करते हैं वे उसी की नकल करते हैं। अगर हम बड़ों का सम्मान करेंगे तो वे भी सम्मान करना ही सीखेंगे।

एक बड़ा प्रसिद्ध गाना है - ''जैसा कर्म करेगा इंसान, वैसा फल देगा भगवान''।

श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
bhakti.vichar.vishnu@gmail.com

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