इन पुण्यात्मा की मृत्यु हुई थी श्रीराम की गोद में, जानें इनके विषय में

Tuesday, May 26, 2015 - 12:08 PM (IST)

प्रजापति कश्यप जी की पत्नी विनता के दो पुत्र हुए-गरुड़ और अरुण। अरुण जी सूर्य के सारथी हुए। सम्पाती और जटायु इन्हीं अरुण के पुत्र थे। बचपन में सम्पाती और जटायु ने सूर्य-मंडल को स्पर्श करने के उद्देश्य से लम्बी उड़ान भरी। सूर्य के असह्य तेज से व्याकुल होकर जटायु तो बीच से लौट आए परन्तु सम्पाती उड़ते ही गए। सूर्य के सन्निकट पहुंचने पर सूर्य के प्रखर ताप से सम्पाती के पंख जल गए और वह समुद्र तट पर गिर कर चेतना शून्य हो गए। चंद्रमा नामक मुनि ने उन पर दया करके उनका उपचार किया और त्रेता  में श्री सीता जी की खोज करने वाले बंदरों के दर्शन से पुन: उनके पंख जमने होने का आशीर्वाद दिया।

जटायु पंचवटी में आकर रहने लगे। एक दिन आखेट के समय महाराज दशरथ से इनका परिचय हुआ और यह महाराज के अभिन्न मित्र बन गए। वनवास के समय जब भगवान श्रीराम पंचवटी में पर्णकुटी बनाकर रहने लगे तब जटायु से उनका परिचय हुआ। भगवान श्रीराम अपने पिता के मित्र जटायु का सम्मान अपने पिता के समान ही करते थे। भगवान श्रीराम अपनी पत्नी सीता जी के कहने पर कपट-मृग मारीच को मारने के लिए गए और लक्ष्मण भी सीता जी के कटुवाक्य से प्रभावित होकर श्रीराम को खोजने के लिए निकल पड़े।

आश्रम को सूना देखकर रावण ने सीता जी का हरण कर लिया और बलपूर्वक उन्हें रथ में बैठाकर आकाश मार्ग से लंका की ओर चला। सीता जी के करुण विलाप को सुन कर जटायु ने रावण को ललकारा और उसके केश पकड़ कर उसे भूमि पर पटक दिया। जटायु का रावण से भयंकर संग्राम हुआ और अंत में रावण ने तलवार से उनके पंख काट डाले।

जटायु मरणासन्न होकर भूमि पर गिर पड़े और सीता जी को लेकर रावण लंका की ओर चला गया। भगवान श्रीराम सीता जी को खोजते हुए जटायु के पास आए। जटायु मरणासन्न थे। वह श्रीराम के चरणों का ध्यान करते हुए उन्हीं की प्रतीक्षा कर रहे थे। इन्होंने श्रीराम से कहा, ‘‘राघव! राक्षसराज रावण ने मेरी यह दशा की है। वह दुष्ट सीता जी को लेकर दक्षिण दिशा की ओर गया है। मैंने तुम्हारे दर्शनों के लिए ही अब तक अपने प्राणों को रोक रखा था। अब मुझे अंतिम विदा कर  दो।’’

भगवान श्रीराम के नेत्र भर आए। उन्होंने जटायु से कहा, ‘‘तात! मैं आपके शरीर को अजर-अमर तथा स्वस्थ कर देता हूं, आप अभी संसार में रहें।’’

जटायु बोले, ‘‘श्री राम! मृत्यु के समय तुम्हारा नाम मुख से निकल जाने पर अधम प्राणी भी मुक्त हो जाता है। आज तो साक्षात तुम स्वयं मेरे पास हो। अब मेरे जीवित रहने से कोई लाभ नहीं है।’’

भगवान श्रीराम ने जटायु के शरीर को अपनी गोद में रख लिया। उन्होंने पक्षीराज के शरीर की धूल को अपनी जटाओं से साफ किया। जटायु ने उनके मुख-कमल का दर्शन करते हुए उनकी गोद में अपना शरीर छोड़ दिया। इन्होंने परोपकार के बल पर भगवान का सायुज्य प्राप्त किया और भगवान ने इनकी अंत्येष्टि क्रिया को अपने हाथों से सम्पन्न किया।

 

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