ईश्वर को मिलने का सरल मार्ग

Thursday, May 21, 2015 - 08:41 AM (IST)

एक बार संत रामदास जी के पास एक शिष्य आया और उसने पूछा, ‘‘प्रभु मैं कौन-सी साधना करूं?’’

रामदास जी ने उत्तर दिया, ‘‘कोई भी कार्य करने से पहले यदि तुम यह निश्चय करोगे कि वह भगवान के लिए किया जा रहा है तो तुम्हारे लिए यही साधना उत्तम होगी।’’ 

तुम यदि तय कर लो कि तुम्हें दौडऩा है तो दौड़ो किंतु दौडऩे से पहले यह निश्चय कर लो कि तुम भगवान के लिए दौड़ रहे हो तब यही तुम्हारी साधना होगी।

शिष्य ने पुन: पूछा, ‘‘गुरुवर क्या बैठकर करने की कोई साधना नहीं है? क्या मैं जप के द्वारा साधना नहीं कर सकता हूं?’’

तब संत बोले, ‘‘हां जप कर सकते हो लेकिन ध्यान रखना यह तुम भगवान के लिए कर रहे हो। इसमें भाव का महत्व है, क्रिया का नहीं।’’

शिष्य समझ नहीं पाया, तब संत रामदास बोले, ‘‘क्रिया का भी महत्व है। क्रिया से भाव और भाव से ही तो क्रिया होती है लेकिन ऐसे समय में आपकी दृष्टि लक्ष्य की ओर होनी चाहिए।’’

 जब तुम जो भी करोगे वही साधना होगी। लक्ष्य के लिए क्रिया और भाव की आवश्यकता होगी। इनके योग का नाम साधना है और इन्हीं से सिद्धि प्राप्त होती है। यदि लक्ष्य भगवान की ओर है, तो निश्चय ही ईश्वर आपको जरूर मिलेंगे।

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