वास्तु से जाने क्यों करते हैं किसान आत्महत्या?

Thursday, May 07, 2015 - 09:53 AM (IST)

भारत के कई प्रान्तों में विशेषकर महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, गुजरात और मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ इत्यादि से आए दिन किसानों की आत्महत्या की खबरें मीडिया में आती रहती हैं। किसानों के आत्महत्या का एकमात्र कारण होता है उनकी आर्थिक बदहाली। जब किसान की फसल एक के बाद एक लगातार कई वर्षों तक खराब होती रहती है तो उसकी आर्थिक स्थिति भी क्रमशः बद से बदतर होती जाती है। 

हमारे देश में सामान्यतः किसान फसल उगाने के लिए स्थानीय साहूकारों से कर्ज लेते हैं। लगातार बिगड़ती आर्थिक स्थिति के कारण जब वह कर्ज चुकाने में असमर्थ हो जाता है तो उसके द्वारा लिए कर्ज की वसूली का दबाव उस पर पड़ता है तब उसके सामने आत्महत्या जैसा कदम उठाने के अलावा और कोई चारा नहीं बचता।

किसान की इस बदहाली में उसके खेत के वास्तु की अहम् भूमिका होती है। जिन किसानों की फसल लगातार खराब हो जाती है, सामान्यतः उनके खेत अनियमित आकार के होते हैं, जिनका ढ़लान दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर होता है और इन्हीं दिशाओं में भूमिगत पानी का स्रोत जैसे कुंआ, बोरवेल इत्यादि होता है। इसके विपरीत जिन खेतों को ढ़लान उत्तर या पूर्व दिशा में होता है और भूमिगत पानी के स्रोत भी इन्हीं दिशाओं में होता है उनके खेतों में फसल हमेशा अच्छी होती है जिस कारण वह किसान आर्थिक रुप से सम्पन्न होते हैं।

किसी भी किसान के लिए आर्थिक बदहाली से बचने का एकमात्र तरीका है कि वह अपने खेत में निम्नलिखित परिवर्तन करके अपने खेतों को वास्तुनुकूल करें।

१ अनियमित आकार के खेत को आयताकार कर उसके चारों तरफ एक से डेढ़ फीट ऊंची मिट्टी की मेढ़ बनाएं या बागड़ लगाएं। यदि खेत का कोई भाग इस आयताकार भाग से बच गया है तो उस छोटे भाग पर अलग से फसल उगाएं। यदि खेत बड़े आकार का है और उसमें बढ़ाव घटाव ज्यादा है तो ऐसी स्थिति में एक से अधिक आयताकार खेत बनाकर उनमें मेढ़ बनाएं या बागड़ लगाएं।

२ खेत की दक्षिण और पश्चिम दिशा में जो ढ़लान उसे उत्तर और पूर्व दिशा से मिट्टी खोदकर खेत की दक्षिण व पश्चिम दिशा में डालकर खेत को समतल करें। खेत को समतल करने के लिए मिट्टी कम पड़ने पर कहीं ओर से भी मिट्टी लाकर वहां डाली जा सकती है।

३ खेत में आग्नेय कोण, दक्षिण दिशा, नैऋत्य कोण, पश्चिम दिशा, वायव्य कोण तथा मध्य में कहीं भी भूमिगत पानी का स्रोत जैसे - कुंआ, बोरवेल, बावड़ी, टंकी हो तो उसे मिट्टी भरकर समतल कर दें और नया भूमिगत पानी के स्रोत खेत की उत्तर दिशा, ईशान कोण या पूर्व दिशा में कहीं भी बनाएं।

४  खेत में आने-जाने का रास्ता पूर्व ईशान, दक्षिण आग्नेय, पश्चिम वायव्य और उत्तर ईशान में ही कहीं पर रखें। पूर्व आग्नेय, दक्षिण नैऋत्य, पश्चिम नैऋत्य और उत्तर वायव्य में कभी भी ना रखें।

आर्थिक बदहाली से परेशान किसान यदि वास्तुशास्त्र के उपरोक्त सिद्धान्तों का पालन कर ले तो यह तय है कि वह हमेशा अच्छी फसल प्राप्त करेगा, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी।

- वास्तु गुरू कुलदीप सलूजा 

thenebula2001@yahoo.co.in

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