क्या ज्योतिष भूकम्पों की भविष्यवाणी कर सकता है?

Tuesday, May 05, 2015 - 08:38 AM (IST)

25 अप्रैल, 2015 को नेपाल के काठमांडू व लामजंग तथा भारत के कई उत्तरी व पूर्वी राज्यों में आए भूकम्प का ज्योतिषीय विवेचन भारतीय ज्योतिषियों की बजाय पश्चिमी देशों के ज्योर्तिवदों ने अधिक सक्रिय और गत 200 सालों में आए जलजलों के आंकड़ों का उल्लेख बहुत गहनता से किया है। विशेषकर अमेरिका के एस्ट्रोलॉजर्स ने इस विषय पर बहुत गहरा अध्ययन किया है। 
 
सानफ्रांसिस्को में 18 अप्रैल, 1906 की प्रात: 5 बजकर 12 मिनट पर और उसके बाद वहीं 17 अक्तूबर, 1989 की सायं  5 बजकर 04 मिनट पर आए भूकम्प के समय वही ग्रह सक्रिय थे जो 25 अप्रैल को रहे। 
 
इससे पूर्व 4 अप्रैल,1905 में कांगड़ा, 31 मई ,1935 को क्वेटा, 19 जनवरी,1975 को किन्नौर, 20 अक्तूबर, 1991  तथा 29 मार्च,1989 को चमोली, 26 जनवरी, 2001 को भुज आदि में आए तीव्र गति वाले भूकम्पों और 25 अप्रैल को आए भूकम्पों के ज्योतिषीय आकलन में समानता है। 
 
हालांकि अभी तक तो आधुनिक विज्ञान नहीं बता पाता कि भूकम्प या सुनामी कब कहां और क्यों आएगी परंतु ज्योतिष गत 100 वर्षों से इसका  सही पूर्वानुमान अवश्य लगाता आ रहा है। इसी प्रकार ज्योतिष में एक नियम है- आगे मंगल, पीछे भान, वर्षा होवे ओस समान। अर्थात् जब भी मंगल सूर्य से अंशों की दृष्टि से आगे होगा उस दौरान वर्षा न के बराबर होगी। कुछ साल पहले मौसम विभाग कहता रहा कि बारिश कल आएगी, परसों आएगी और जुलाई का महीना बीत गया। 
 
इन भूकम्पों का मुख्य कारण चंद्र ग्रहण तथा शनि व गुरु के विभिन्न योग माने गए हैं। पश्चिमी देशों व भारत के ज्योतिषी इन सामान्य योगों पर पूर्णत: सहमत हैं कि भूकम्प लाने में शनि व चंद्रमा की अहम भूमिका रहती है। सुनामी जैसी घटनाएं सुपर मून के आसपास ही हुई हैं। भारतीय ज्योतिष में भगवान शिव को वृश्चिक राशि से जोड़ा गया है। उनका रौद्र रूप या तांडव इसका प्रतीक है। आजकल शनि वृश्चिक राशि में ही नवम्बर 2014 से चल रहे हैं और 20 मार्च को वक्री हो गए थे।
 
भूकम्प का मुख्य कारण 
ज्योतिष के नियमानुसार जब भी ग्रहण लगते हैं, उसके 41 दिनों के भीतर पृथ्वी एवं अन्य ग्रहों के मध्य गुरुत्वाकर्षण तथा असंतुलन बढ़ जाने के कारण धरती पर प्राकृतिक आपदाओं की आशंका रहती है। इस वर्ष 20 मार्च को सूर्य ग्रहण तथा 4 अप्रैल को चंद्र ग्रहण लग चुके हैं। दोनों ग्रहणों के मध्य मात्र 15 दिनों का ही अंतर था। पहले ग्रहण 20 मार्च से लेकर भूकम्प के 25 अप्रैल के आने के मध्य अभी मात्र 35 दिन ही बीते थे और बड़ी तीव्रता वाले भूकम्प 41 दिन की समय सीमा समाप्त होने से पूर्व ही आ गए। मुख्य रूप से मंगल एवं शनि यदि 180 अंश पर हों  या उनकी युति हो या शनि  या मंगल अपनी शत्रु राशि में आ जाएं तो भूकम्प की आशंका या दुर्योग बन जाते हैं। 
 
वर्तमान संयोग में शनि अष्टम भाव में होने के कारण धरातल तथा आकाश दोनों से ही संबंधित हैं। 25 अप्रैल को 11 बजकर 40 मिनट पर शनि को छोड़कर सभी ग्रह अपनी ठीक स्थिति में हैं। शनि मंगल की आठवीं राशि वृश्चिक में वक्री हैं। शनि 10वीं दृष्टि से सूर्य की शत्रु राशि को देख रहा है।  
 
एक और ज्योतिषीय नियम के अनुसार जब भी आकाश में कोई भी बड़ा या मुख्य ग्रह वक्री या मार्गी होता है तो भी भूकम्प की आशंका रहती है। 
 
शनि महाराज 14 मार्च अर्थात चंद्रग्रहण से 6 दिन पहले ही वक्री हो गए थे। इन दोनों योगों के भीतर 41वें दिन ही भूकम्प आरंभ हो गया। अभी 13 सितम्बर को सूर्य ग्रहण तथा 28 सितम्बर को चंद्र ग्रहण लगने बकाया हैं।
 
संवत् 2072?
21 मार्च, 8 चैत्र, शनिवार को कीलक नामक नया विक्रमी संवत 2072 आरंभ हुआ जिसमें राजा शनि और मंत्री मंगल हैं। जब भी संवत् में राजा शनि होता है तो बे-मौसम बरसात व बाढ़ अवश्य होती है और मौसम का मिजाज अप्रत्याशित तथा अकल्पनीय होता है जैसा कि इसका प्रभाव 1 मार्च से ही दिखना आरंभ हो गया और मार्च में वर्ष के कई साल पुराने रिकॉर्ड टूट गए। शनि के कारण नए रोग व अजीबो-गरीब बीमारियां उत्पन्न होने की आशंका रहती है। इस साल स्वाइन फ्लू का दबदबा रहा। 
 
अप्रत्याशित रूप से वर्षा हुई। अप्रैल में बर्फ देखी गई। बद्रीनाथ, केदारनाथ जैसे तीर्थों पर कपाट खुलने पर बहुत वर्षों बाद बर्फ अप्रैल में नजर आई। यह कुयोग सुनामी जैसी हालत तथा अन्य तरह की प्राकृतिक आपदा अभी और ला सकता है। अत: हमें तथा आपदा प्रबंधन से जुड़े लोगों को सतर्क रहना होगा। 
 
—मदन गप्ता सपाटू, ज्योतिषविद्
 
 
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