स्वप्न के माध्यम से तय हुई थी रावण की मृत्यु

Friday, Apr 24, 2015 - 09:03 AM (IST)

स्वप्न शयनावस्था की विचार क्रिया है। मानव शरीर में मस्तिष्क की क्रिया दो तरह से होती है चेतन एवं अवचेतन। हम अपने दैनिक कार्यकलापों में बेशक चेतन रहते हैं मगर हमारा अवचेतन मन भी उतना ही सक्रिय रहता है। हम कोई भी कार्य करते हों तो अंत:करण से हमारा मन कहीं होता है।

दिन में कई बार हम अपने कार्य-कलापों व आकांक्षाओं के वशीभूत किसी भी कार्य को संपन्न कराने की चेष्टा करते हैं और उसमें सफलता की प्राप्ति नहीं होती। इसका कारण कोई भी पारिवारिक, सामाजिक, व्यावसायिक हो सकता है। सोने से पहले भी हम इन्हीं विचारों में लीन, सोने का प्रयास करते सो जाते हैं। 
 
निद्राकाल में हमारा अवचेतन मन पूर्ण रूप से क्रियाशील होकर जाग्रत अवस्था के किए कार्यों का विश्लेषण करने लगता है। नींद में होने के कारण हमारा भौतिक शरीर इसमें क्रियाशील नहीं होता, मगर अवचेतन मन जो कुछ क्रियाएं करता है वही स्वप्न  हैं।
 
कभी-कभी हम जो स्वप्न में देखते अथवा करते हैं, उसमें अति प्रसन्नता होती है और कभी-कभी किसी दुखद घटना से (स्वप्न में) द्रवित और भयभीत होते हैं, और अवचेतन से एकदम चेतन में आकर जाग जाते हैं, पसीना-पसीना भी हो जाते हैं जैसे कि हमारे साथ वैसा ही कुछ घटित हो गया हो परंतु जैसे-जैसे चेतना लौटती है तो हमें स्मरण होता है कि वह सब तो स्वप्न था।
 
हम कई बार जागृत अवस्था में भी स्वप्न देखते हैं, मगर उसको मनन की संज्ञा दी जाती है। स्वप्नों पर विश्वास सृष्टि के आरंभ से ही है। राजा-रानियां भी उस काल के बुद्धिजीवियों से स्वप्न के फल का स्पष्टीकरण मांगते थे। रामायण काल में त्रिजटा ने भी सीता माता को अपना स्वप्न सुनाया था कि रावण का सिर मूंडा हुआ है और वह गधे पर सवार होकर दक्षिण दिशा में जा रहा है। यह बताकर उसने सीता जी को संकेत दिया था कि निश्चय ही रावण मारा जाएगा। श्री राम की जीत होगी। इतिहास व पुराणों में और भी कई ऐसे तथ्य मिलते हैं।
 
                                                                                                                                       -ज्योतिष मर्मज्ञ भगतराम हांडा
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