तब तक इंसान अपने ऊपर काबू नहीं पा सकता

Saturday, Apr 18, 2015 - 01:21 PM (IST)

सभी इन्द्रियां अपने-अपने कामों में लगी रहती हैं। मिसाल के तौर पर आंखें देखती हैं, कान सुनते हैं, नाक सूंघती है आदि। इन्द्रियां जब तक सुख की इच्छा में उलझी रहती हैं, तब तक साधना में आगे बढऩा मुमकिन नहीं है। हमारे शरीर की सभी क्रियाएं प्राणों से ही होती हैं। 

हाथों को हिलाना, पैरों से चलना, मुंह से बोलना, ये सभी शरीर की क्रियाएं हैं और बुद्धि, अहंकार आदि सूक्ष्म क्रियाएं मन की क्रियाएं हैं, मगर दोनों का आधार प्राण ही होता है।
 
सच्चे योगी अपनी सभी इन्द्रियों से होने वाले काम और मन से होने वाली क्रियाओं को ज्ञान के हिसाब से चलाना शुरू कर देते हैं। जब इन्द्रियां, प्राण, मन, बुद्धि आदि सभी को हम अपने हिसाब से चलाने लगते हैं, उस स्थिति को आत्मसंयम कहा जाता है। 
 
यह आत्मसंयम आत्मज्ञान से आता है। जब तक आत्मज्ञान नहीं होता, तब तक इंसान अपने ऊपर काबू नहीं पा सकता। जब आत्मसंयम हो जाता है, तब योगी उसी के हिसाब से अपने जीवन को जीता है और यही उसका हवन होता है।
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