कृष्णावतार

punjabkesari.in Sunday, Apr 05, 2015 - 07:30 AM (IST)

मंत्र सिद्ध हो जाने के बाद एक दिन युधिष्ठिर अकेले अर्जुन को साथ लेकर वन में टहलने निकल गए। आश्रम से दूर एक सुंदर स्थान देखकर घास पर बैठ गए। उसके बाद उन्होंने अर्जुन को अपने बहुत निकट बिठा लिया और बोले, ‘‘अर्जुन! भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, कर्ण, दुर्योधन और कृपाचार्य आदि अस्त्र-शस्त्र की विद्या में अत्यंत प्रवीण हैं। दुर्योधन ने उन सबका सत्कार करके उन्हें अपने पक्ष में कर लिया है। 

मेरे कहने का आशय यह है कि यदि युद्ध हुआ तो ये सब हमारा पक्ष नहीं लेंगे। इसलिए अब हमें केवल तुमसे ही आशा है। मैं इस समय तुम्हें एक आवश्यक कर्तव्य बताने के लिए यहां एकांत में लाया हूं।’’
 
कुछ क्षण रुक कर युधिष्ठिर ने कहा, ‘‘उस दिन रात को भगवान वेदव्यास ने तुम सबको हटा कर एकांत में मुझे एक मंत्र विद्या का उपदेश दिया था और मुझे यह आदेश किया था कि मैं तुम्हें वह विद्या बता दूं। तुम सावधानीपूर्वक मुझसे यह विद्या सीख लो और युद्ध आरंभ होने से पहले ही देवताओं का प्रसाद प्राप्त कर लो। इसके लिए तुम्हें और हम सबको ब्रह्मïचर्य व्रत का पालन करना होगा। तुम धनुष बाण, कवच और खड्ग धारण करके चुपचाप उत्तर दिशा को चले जाओ। उत्तराखंड में तुम अपने मन को तपस्या में लीन करके देवताओं की कृपा प्राप्त करना।’’
(क्रमश:)

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