तुम कौन हो? स्वयं को पहचानते हो?

Tuesday, Mar 31, 2015 - 01:09 PM (IST)

गुरु ज्ञानी-परमात्मा की बगिया के खिले हुए सुंदर फूल हैं। दुनिया में ठीकरे इकट्ठे करने वाले लोग बहुत हैं परन्तु ज्ञान को संचित करने वाले लोग भाग्यशाली होते हैं। ऐसा संचय करने वाले लोग दुनिया में बहुत कम होते हैं। कोई-कोई ही ऐसा साज बनता है जिसके अंदर यह संगीत फूटता है। वह कोई विरला ही होता है इसलिए चेहरा मत लटकाओ, उत्साह को मार मत दो, कर्मठता को छोड़ मत दो।

दूसरों को गिराकर कोई आगे नहीं बढ़ता, खुद उठो, दूसरों को उठाओ। धन-बल से इतने समर्थ बन जाओ कि खुद भी उठो और दूसरों को भी आगे बढ़ाओ। ऐसे लोगों के साथ प्रकृति की शक्तियां भी जुट जाती हैं। लाचार होकर दूसरे की मदद की उम्मीद न करें। कुछ लोग ऐसे हैं जो यहां बैठे भी परमात्मा का आनंद लेते हैं। ज्ञानी परमात्मा को पसंद हैं और ज्ञानियों के कारण यह धरती शोभायमान है। शिलाओं पर बैठक मंत्र लिखे, शिक्षाएं लिखीं। आने वाले समय में जो कोई भी पढ़ेगा, उसका कल्याण होगा। सम्राट अशोक के समय पत्थर पर कीमती शिक्षाएं लिखी गईं। उनका प्रयास रहा कि ज्ञान के पुष्प अपनी खुशबू के साथ मानव जाति के लिए महकते रहें।
 
मगर ध्यान रखें, समाचार पत्र पढ़ते ही बासी हो जाता है, हम कहते हैं कि हम पढ़ चुके हैं। व्यक्ति के हृदय में अपना नाम लिखने की कोशिश कर दीजिए वह नाम सदा के लिए अमर हो जाएगा। हृदय में लिखने के लिए यह साधारण कलम काम नहीं आती। भगवान कृष्ण ने कहा कि जिन्होंने अपने जीवन को ज्ञान की दिशा में लगा दिया वे मेरे बहुत प्यारे हैं। 
 
ज्ञानियों को उन्होंने बहुत प्रिय माना। ज्ञानी किसी न किसी ढंग से समाज का कल्याण कर जाते हैं। संसार ऐसा विचित्र है कि आंख बंद होते ही सब पराया जो जाता है। गुरु के सामने अपने आपको मिटाकर आओ तो समझ जाओगे कि तुम कौन हो? 
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