धनवान होने पर भी सम्मान नहीं पाते ऐसे लोग

Tuesday, Mar 31, 2015 - 09:07 AM (IST)

गुणा: सर्वत्र पूज्यन्ते न महत्योऽपि सम्पद:।

पूर्णेन्दु किं तथा वन्द्यो निष्कलंको यथा कृश:।।

अर्थ : गुणों की सभी जगह पूजा होती है, न कि बड़ी संपत्तियों की। क्या पूर्णिमा के चांद को उसी प्रकार से नमन नहीं करते, जैसे द्वितीया के चांद को?

भावार्थ : भाव यह है कि चंद्रमा किसी भी रूप में रहे विद्वान व्यक्ति के गुण की भांति उसे हर स्थिति में नमन करते हैं। 

इस संसार में गुणी व्यक्ति का सम्मान सभी जगह पाया जाता है, भले ही वह अर्थाभाव से पीड़ित हो। भारी धन सम्पत्ति के बावजूद धनवान अगर गुणहीन है तो उसका लोग हृदय से सम्मान नहीं करते।

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