दिव्य मोती की चाह है तो मानें चाणक्य की यह बात

Sunday, Mar 29, 2015 - 07:13 AM (IST)

समाज में रहते हुए हमें बहुत से लोगों के साथ संबंध स्थापित करने पड़ते हैं। किसी के साथ हमारे कैसे संबंध होंगे यह निर्भर करता है हमारे व्यवहार पर जैसे पांचों उंगलियां बराबर नहीं होती वैसे ही सभी के साथ हमारा व्यवहार भी समान नहीं होता।  संगत की रंगत का गहरा प्रभाव व्यक्तित्व पर पड़ता है।

आचार्य चाणक्य कहते हैं की - 
 
सिंह भवन यदि जाय कोउ, गजमुक्ता तहं पाय। 
वत्सपूंछ खर चर्म टुक, स्यार मांद हो जाय।।
 
अर्थात शेर की मांद में जाने से हाथी के कपोल का मोती प्राप्त होता है। सियार की गुफा में जाने से बछड़े की पूंछ और गधे के चमड़े के टुकड़े ही प्राप्त होते हैं।
 
वैसे ही हमारा जीवन है अगर हम अपने से अधिक ताकतवर व्यक्ति के साथ संबंध स्थापित करते हैं तो इसमें हम पर खतरा अवश्य मंडराता है लेकिन सही समय आने पर धन, वैभव और ऐश्वर्य़ की प्रप्ति होती है। जैसे शेर हाथी का शिकार करता है और उसे अपना भोजन बनाता है लेकिन उसके कपोल के मोती का त्याग कर देता है। वीर पुरूष अपना साहस बटोर कर शेर की गुफा में जाएगा तो उसे वहां दिव्य और आकर्षित करने वाले दुर्लभ हाथी के कपोल का मोती प्राप्त होगा।
 
इसके विपरित यदि मनुष्य किसी कपटी, धूर्त, ठग, धोखेबाज की संगत करता है तो उसे बदले में कुछ भी प्राप्त नहीं होता। जान और माल का डर बना रहता है। शिकारी को सियार की गुफा में जाने से कुछ प्राप्त नहीं होता उसे हताश होकर ही वहां से लौटना पड़ता है। 
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