श्रीराम ने त्यागा अपना चतुर्भुज रूप और बने बालक

Saturday, Mar 28, 2015 - 09:04 AM (IST)

‘‘नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सकल पच्छ अभिजित हरि प्रीता’’ 

चैत्र मास शुक्ल नवमी के दिन मध्यान्हकाल में भगवान को प्रिय अभिजित मुहूर्त में मर्यादा पुरुषोत्तम जानकीवल्लभ, कमलनयन, रघुवंश शिरोमणि, सम्पूर्ण लोकों में परम सुंदर, करुणामूर्ति प्रभु श्रीराम अयोध्यापति दशरथ तथा कौशल्या के घर प्रकट हुए। 
 
सब लोकों को सुख देने वाले, सर्वव्यापी, कृपालु दीनदयालु भगवान को चतुर्भुज रूप में प्रकट हुआ देख माता कौशल्या अत्यंत हर्षित हो भगवान की स्तुति करने लगीं कि हे प्रभु! वेद, पुराण आपको माया, गुण और ज्ञान से अतीत कहते हैं। वे लक्ष्मीपति भगवान भक्तवत्सल श्री हरि स्वयं मेरा हित करने के लिए प्रकट हुए हैं। तुलसीदास जी कहते हैं-
 
‘‘जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहि।
तीरथ सकल तहां चलि आवहि।’’
 
जिस दिन श्री राम जी का जन्म होता है वेदों में कहा है कि उस दिन सब तीर्थ वहां चले जाते हैं। 
 
विप्र धेनु सुर संत हित, लीन्ह मनुज अवतार।
निज इच्छा निर्मित तनु, माया गुन गो पार।।
 
ब्राह्मण, गौ, देवता और संतों का हित करने के लिए अपनी इच्छा से शरीर धारण कर, माया, गुण व इंद्रियों से परे भगवान श्री हरि प्रकट हुए।
 
‘‘ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति वेद कहै।’’
 
वेद कहते हैं माया से रचे हुए असंख्य ब्रह्मांड प्रभु श्री राम के रोम-रोम में बसते हैं, लेकिन माता कौशल्या प्रभु श्री राम को तो बाल रूप में देखने को अधीर थीं। वह कहती है, ‘‘कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख पर अनूपा।’’
 
प्रभु आप चतुर्भुज रूप त्याग कर सबको सुख प्रदान करने वाली बाल लीला करें। 
 
तब श्रीराम ने अपना चतुर्भुज रूप त्याग दिया और बाल रूप में आ गए।
 
कौशल्या माता महान नारी हैं जिन्होंने भगवान विष्णु को बालक बना दिया। उन्होंने आदेश दिया कि, ‘‘कीजै सिसु लीला।’’ 
 
मां के इस आदेश को भगवान ने सुना और उनकी बात मानकर भगवान रोने लगे।
 
प्रभु रोए- राम जन्म हुआ।
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