भगवान शिव के मुख से जानें क्यों हुआ था राम जन्म

Saturday, Mar 28, 2015 - 08:55 AM (IST)

हिन्दू धर्म के बहुत से त्योहार श्रीराम के जीवन से जुड़े हुए हैं जिनमें रामनवमी के रूप में उनका जन्मदिवस मनाया जाता है। हिन्दुओं के आराध्य देव श्रीराम भगवान विष्णु के दसवें अवतार माने जाते हैं। 

पार्वती जी से कहते हैं भगवान शिव- ‘‘राम जनम के हेतु अनेका। परम विचित्र एक ते एका।
 
भगवान श्रीराम जी के जन्म के अनेक कारण हैं और सभी एक से एक अधिक आश्चर्य वाले हैं। 
 
परब्रह्म भगवान श्री राम ने स्वयं को मनु शतस्या के पुत्र रूप में प्राप्त होने का वर पूर्ण किया। अहिल्या को अपनी चरण रज प्रदान कर शाप मुक्त किया। शबरी के आश्रम में पधार कर उसकी निर्मल भक्ति पूर्ण की। गिद्धराज जटायु जब भगवती सीता जी को रावण के चंगुल से मुक्त करवाते हुए घायल होकर भूमि पर गिर पड़े तब भी वह मरणासन्न अवस्था में श्री राम के चरणों का ध्यान करते हुए उन्हीं की प्रतीक्षा कर रहे थे। जब श्रीराम लक्ष्मण जी के संग भक्तराज जटायु के पास पहुंचे, तब जटायु बोले कि प्रभु! मैंने आपके दर्शनों के लिए ही अब तक अपने प्राणों को रोक रखा है।’’
 
भगवान श्रीराम के नेत्र भर आए। वह बोले, मैं आपके शरीर को अजर-अमर स्वस्थ कर देता हूं।
 
जटायु बोले- हे श्री राम! मृत्यु के समय आपका नाम मुख से निकल जाने पर अधम प्राणी भी मुक्त हो जाता है। आज तो साक्षात आप मेरे सम्मुख हैं।
 
भगवान श्रीराम ने भक्तराज जटायु को गोद में लिया और उन्हें अपने वैकुंठ धाम जाने का वर प्रदान किया। जटायु ने भगवान के मुख-कमल के दर्शन करते हुए उनका सायुज्य प्राप्त किया।
 
वनवास के समय असंख्य ऋषियों-मुनियों ने भगवान के दर्शन कर अपने जीवन को सार्थक किया। भगवान श्री राम का ध्यान भगवान शिव और पार्वती जी सदैव करते रहते हैं। इस चराचर विश्व की सृष्टि करने वाले प्रभु श्रीराम साक्षात परब्रह्म पूर्णावतार हैं। श्री राम के रूप में उनकी कर्तव्य-परायणता तथा आदर्श पुत्र, आदर्श भ्राता, आदर्श पति, आदर्श मित्र के रूप में सद्-आचरण मर्यादा का चरमोत्कर्ष है एवं समस्त मानवीय समाज के लिए आचरणीय एवं वंदनीय है।
 
बाली का वध कर न केवल उसे मोक्ष प्रदान किया अपितु सुग्रीव को किष्किन्धा का राज्य प्रदान कर वहां आर्य विधान स्थापित किया। राक्षस राज रावण का वध कर श्री राम भक्त विभीषण का राजतिलक किया और उसे चिरंजीवी होने का वर दिया। 
श्री हनुमान जी, भरत जी, शत्रुघ्न जी तथा लक्ष्मण जी की श्री राम जी के प्रति अव्यभिचारिणी प्रेम भक्ति अतुलनीय है। श्रीराम जी की स्तुति में भगवान शिव कहते हैं-
‘‘अति दीन मलीन दुखी नितहीं
जिन्ह के पद पंकज प्रीति नहीं।’’
 
जिनकी भगवान श्रीराम के कमलरूपी चरणों में प्रीति नहीं। वे अति दीन मलीन मनुष्य सदा इस संसार में केवल दुख ही पाते हैं।
 
‘‘राम-रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने।’’
 
पार्वती जी से भगवान शिव कहते हैं प्रभु श्री राम का नाम सहस्रनाम के तत्तुल्य है। मैं सदा-सर्वदा ‘राम’ इस मनोरम नाम का स्मरण करता रहता हूं।
Advertising