आप भी गुरू की तलाश में हैं तो यूं होगी आपकी तलाश पूर्ण

Thursday, Mar 26, 2015 - 10:14 AM (IST)

गुरु द्रोणाचार्य पांडवों और कौरवों के गुरु थे, उन्हें धनुर्विद्या का ज्ञान देते थे। एक दिन एकलव्य जोकि एक गरीब शुद्र परिवार से थे, द्रोणाचार्य के पास गए और बोले कि गुरुदेव मुझे भी धनुर्विद्या का ज्ञान प्राप्त करना है। आपसे अनुरोध है कि मुझे भी अपना शिष्य बनाकर धनुर्विद्या का ज्ञान प्रदान करें।

किन्तु द्रोणाचार्य ने एकलव्य को अपनी विवशता बताई और कहा कि वे किसी और गुरु से शिक्षा प्राप्त कर लें। यह सुन कर एकलव्य वहां से चले गए। इस घटना के बहुत दिनों बाद अर्जुन और द्रोणाचार्य शिकार के लिए जंगल की ओर गए। उनके साथ एक कुत्ता भी गया हुआ था। कुत्ता अचानक से दौड़ते हुए एक जगह पर जाकर भौंकने लगा, वह काफी देर तक भौंकता रहा और फिर अचानक ही भौंकना बंद कर दिया। अर्जुन और गुरुदेव को यह कुछ अजीब लगा और वे उस स्थान की ओर  बढ़ गए जहां से कुत्ते के भौंकने की आवाज आ रही थी।

उन्होंने वहां जाकर जो देखा वह एक अविश्वसनीय घटना थी। किसी ने कुत्ते को बिना चोट पहुंचाए उसका मुंह तीरों के माध्यम से बंद कर दिया था और वह चाह कर भी नहीं भौंक  सकता था। यह देखकर द्रोणाचार्य चौंक गए और सोचने लगे कि इतनी कुशलता से तीर चलाने का ज्ञान तो मैंने मेरे प्रिय शिष्य अर्जुन को भी नहीं दिया है और न ही ऐसे भेदने वाला ज्ञान मेरे अलावा यहां कोई जानता है..., तो फिर ऐसी अविश्वसनीय घटना घटी कैसे?

तभी सामने से एकलव्य अपने हाथ में तीर-कमान पकड़े आ रहा था। यह देखकर तो गुरुदेव और भी चौंक गए।

द्रोणाचार्य ने एकलव्य से पूछा, ‘‘बेटा, तुमने यह सब कैसे कर दिखाया।’’

तब एकलव्य ने कहा, ‘‘गुरुदेव मैंने यहां आपकी मूर्त बनाई है और रोज इसकी वंदना करने के पश्चात मैं इसके समकक्ष कड़ा अभ्यास किया करता हूं और इसी अभ्यास के चलते मैं आज आपके सामने धनुष पकडऩे के लायक बना हूं।’’

गुरुदेव ने कहा, ‘‘तुम धन्य हो। तुम्हारे अभ्यास ने ही तुम्हें इतना श्रेष्ठ धनुर्धर बनाया है और आज मैं समझ गया कि अभ्यास ही सबसे बड़ा गुरु है।’’

Advertising